(Minghui.org) मैंने कई वर्षों तक गंभीर बीमारी की पीड़ा झेली और कुछ मूलभूत आसक्तियों को खोजने और उन्हें छोड़ देने के बाद ही मैं इस परीक्षा में सफल हो सका।
मेरे पति और मैं सहपाठी थे। वे बहुत दयालु थे, मुझसे बहुत प्यार करते थे और फालुन दाफा के मेरे अभ्यास का समर्थन करते थे। जब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने फालुन दाफा पर दमन शुरू किया, तो पहले तो उन्होंने मेरे अभ्यास का विरोध किया, लेकिन जब मैंने यह निश्चय कर लिया कि मैं इसे कभी नहीं छोड़ूँगी, तो उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया।
मेरे पति बहुत गुस्सैल स्वभाव के भी हैं और हर चीज़ पर नियंत्रण रखने की उनकी प्रबल इच्छा है। वे मेहनती और विचारशील हैं और घर के हर छोटे-बड़े काम का ध्यान रखते हैं, लेकिन अंतिम फ़ैसला भी उनका ही होता है।
मैंने साधना अभ्यास में अपने अंतर्मन में झाँकना सीखा और स्वार्थ जैसी आसक्तियों से छुटकारा पाया। मैंने एक अभ्यासी की आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करने का भरसक प्रयास किया है। फिर भी, मेरे पति अक्सर मुझ पर गुस्सा हो जाते थे और कड़े शब्दों से मुझे चुप करा देते थे।
मैं उदास हो गई। जब मैंने एक बेहतर और दयालु इंसान बनने के लिए फ़ा का पालन किया, तब भी वह दुखी और क्रोधित क्यों थे ? मैं उलझन में थी। बाद में, मुझे एक गंभीर रोग कर्म क्लेश हो गया।
मैंने फ़ा का गहन अध्ययन किया क्योंकि उस समय मुझे पता था कि मुझमें कुछ प्रबल आसक्ति ज़रूर है जिनका मैंने पता नहीं लगाया था। एक दिन, मुझे मास्टरजी की शिक्षा का अर्थ समझ में आया:
"मेरे विचार से, जटिल वातावरण एक अच्छी चीज़ है। यह जितना जटिल होगा, उतने ही बेहतर व्यक्ति निर्माण होंगे।" (व्याख्यान नौ, ज़ुआन फ़ालुन)
मुझे तुरंत एहसास हुआ कि मास्टरजी मुझे बता रहे थे कि अगर मेरे पति हमेशा मेरी बात मानते, सौम्य और विचारशील रहते, और मेरा जीवन उतना ही गर्मजोशी भरा और खुशहाल होता जितना मैं चाहती थी, तो मैं कैसे सुधार कर सकती हूँ? मेरे पति मुझे साधना में मदद कर रहे थे। फ़ा को समझने के बाद, मुझे एक अद्भुत अनुभूति हुई, एक ऐसी अनुभूति जो मैंने पहले कभी अनुभव नहीं की थी; मेरे हृदय की गहराई से एक हल्की-फुल्की हँसी फूट पड़ी। मुझे अचानक सुकून, सहजता और खुशी का एहसास हुआ।
मैंने अपने भीतर खोज जारी रखी और अंततः मुझे वह प्रबल आसक्ति मिली, जिसकी याद मेरे साथी अभ्यासियों ने मुझे दिलासा देकर दिलाई थी: भावुकता। इस भावुकता के पीछे, मुझे कई आसक्तियाँ मिलीं: संघर्ष का भय, मेरे पति के दुखी होने का भय, और आहत होने का भय। बात यहीं समाप्त नहीं हुई, मुझे यह भी पता चला कि मैं एक सुखद और सुखी जीवन की चाहत रखती थी, और विभिन्न विचारों को नहीं सुनती थी। मैं प्रतिस्पर्धी और अहंकारी भी थी। ये सब फ़ा के अनुरूप नहीं हैं।
मैंने इन डरों और भावनाओं को त्याग दिया और अपने सद्विचारों को मज़बूत किया। मैंने खुद को संभाला और अपने पति के साथ खुलकर और शांति से बातचीत की। मैंने उन्हें वो सब बताया जो मैं पहले उन्हें बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी।
मैंने उनसे कहा कि मेरा बोधिप्राप्ति गुण कमज़ोर है और मैंने फ़ा को ग़लत समझा है, हालाँकि मैं कई वर्षों से अभ्यास कर रही हूँ। उन्हें खुश करने की मेरी कोशिशें दरअसल अपनी सुरक्षा के लिए थीं।
जब मैं बच्ची थी और मेरे माता-पिता झगड़ते थे, तो मुझे बहुत डर लगता था, इसलिए मैं चोट से बचने के लिए झगड़ा नहीं करती। मैं बस एक खुशहाल परिवार चाहती थी। मैं नहीं चाहती कि वह नाराज़ हो और मुझे डर है कि वह अपनी तीखी ज़बान से मुझे चोट पहुँचाएगा। दरअसल, ये स्वार्थी विचार थे। अब मुझे समझ आ गया है कि मैं उसके भाग्य को नियंत्रित नहीं कर सकती और मैं उसे हमेशा खुश नहीं रख सकती। मैं बस खुद को निखारने के लिए कड़ी मेहनत कर सकती हूँ, उसे कम परेशान कर सकती हूँ, और अपने लिए कम कर्म बना सकती हूँ।
यह सुनकर उन्होंने माफ़ी माँगी और माना कि उनका स्वभाव बहुत खराब था और उसे अंदाज़ा भी नहीं था कि उन्होंने मुझे इतना दर्द दिया है। उन्होंने कहा कि वह अपना स्वभाव सुधार लेंगे।
मैंने उन्हें यह भी बताया कि मैंने उनकी मंज़ूरी के बिना कंप्यूटर ख़रीदा है। वह बिल्कुल शांत रहे और नाराज़ नहीं हुए। उन्होंने मुझे यह भी याद दिलाया कि मिंगहुई वेबसाइट ब्राउज़ करते समय सावधानी बरतें।
मेरे रोग कर्म क्लेश कुछ ही देर में दूर हो गए। मैं मास्टरजी की करुणा और मुक्ति के लिए कृतज्ञ हूँ!
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