(Minghui.org)  मैंने कुछ साल पहले ऑपरेटिंग सिस्टम इंस्टॉल करना सीखा था, और तब से मैंने कंप्यूटर का उपयोग करने और उसे ठीक करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त ज्ञान और कौशल हासिल कर लिया है। यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि मुझे कभी कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला। वास्तव में, मैंने मुख्य रूप से एक तकनीकी फ़ोरम देखकर और कुछ आम लोगों की वेबसाइट पर जाकर खुद ही सीखा। कंप्यूटर साक्षर होने से न केवल उस परियोजना के लिए बहुत सुविधा मिली जिसमें मैं शामिल हूँ, बल्कि साथी अभ्यासियों की मदद करना भी महत्वपूर्ण था। 

पिछले कुछ सालों में, मैंने कई स्थानीय अभ्यासियों के लिए VPN [जो एक साइबर सुरक्षा उपकरण है] स्थापित किया है ताकि वे चीन के फ़ायरवॉल को बायपास कर सकें और मिंगहुई वेबसाइट पर जा सकें। मैंने अभ्यासियों को कंप्यूटर और हार्डवेयर खरीदने और अपग्रेड करने में भी मदद की। मैंने कई लोगों को प्रोत्साहित किया है कि वे अपना खुद का कंप्यूटर लें और मिंगहुई पत्रिकाओं के लिए दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय मिंगहुई वेबसाइट पर लॉग इन करना सीखें। 

कुछ अभ्यासी शायद ही कभी दूसरे अभ्यासियों से मिलते-जुलते थे और उन्हें नियमित रूप से मिंगहुई पत्रिकाएँ या पुस्तिकाएँ नहीं मिलती थीं। मैंने उन्हें कंप्यूटर खरीदने में मदद की, ऑपरेटिंग सिस्टम स्थापित किए और उन्हें मिंगहुई वेबसाइट पर जाने का तरीका सिखाया ताकि वे फ़ा -सुधार की प्रगति के साथ बने रह सकें। इस प्रक्रिया में, मास्टरजी ने मेरे लिए ऐसे अवसरों की व्यवस्था की जो मेरे कर्म को खत्म करने और खुद को बेहतर बनाने में सहायक थे।

अपने कंप्यूटर कौशल का उपयोग करके कर्म ऋण का भुगतान करना

मुझे एक परिचित व्यक्ति बहुत नापसंद थी। मेरे विचार से वह स्वार्थी, घमंडी और चालाक है। वह मेरे प्रति नाराजगी और ईर्ष्या भी रखती थी, हमेशा सावधान रहती थी और श्रेष्ठता का दिखावा करती थी। मैं उसके छोटे-मोटे दिमागी खेल को समझ चुकी थी। एक समय पर, मैंने तय कर लिया कि अब बहुत हो गया—मैं उससे दोबारा बात नहीं करने वाली।

लेकिन एक दिन वह मेरे पास आई और कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम इंस्टॉल करने में मेरी मदद मांगी। मुझे पहले से ही अंदाजा था कि वह यह मदद मांगेगी और मैंने विनम्रता से मना कर दिया। असल में, मैं उस दिन उसके लिए दरवाज़ा भी खोलना नहीं चाहती थी, लेकिन किसी तरह मैंने खोला - मुझे नहीं पता क्यों। 

वह समझ नहीं पाई कि ऑपरेटिंग सिस्टम कैसे इंस्टॉल किया जाए और फिर वापस आई और अपना कंप्यूटर ले आई। मुझे समस्याओं के बारे में संक्षेप में बताने के बाद, वह कंप्यूटर छोड़कर चली गई। मैं फिर से मना नहीं कर सकी अनिच्छा से, मैंने समस्या को ठीक किया और उसके लिए ऑपरेटिंग सिस्टम इंस्टॉल किया।

अगली बार, वह अपना एक पुराना पर्सनल कंप्यूटर लेकर आई और मुझसे उसे ठीक करने के लिए मदद मांगी। मुझे याद आया की वह पूरी तरह से स्वार्थी है और दूसरों की मदद नहीं करती इसलिए मैंने उसे अनदेखा कर दिया। वह कभी भी दूसरों की परवाह नहीं करती और उनके जीवन को आसान बनाने के लिए मदद नहीं करती, फिर भी, उसे मदद मांगने में कोई संकोच नहीं है। मुझे नहीं लगता कि उसके जैसी व्यक्ति किसी की मदद की हकदार है - उसे सख्ती से यह सीखने की ज़रूरत है कि एक स्वार्थी व्यक्ति को दूसरों से मदद नहीं मिलती। लेकिन मैं अपना सद्गुण नहीं खोना चाहती थी - मैंने अपने गुस्से को काबू में किया और उसके लिए कंप्यूटर ठीक कर दिया।

तीसरी बार, वह अपने रिश्तेदार का कंप्यूटर लेकर आई और मुझसे उसे ठीक करने के लिए कहा। मैं उसकी कभी न खत्म होने वाली मांगों से तंग आ चुकी थी। मुझे लगा कि मेरा फायदा उठाया जा रहा है और मैं उसे बाहर धकेल देना चाहती थी। मै तुम्हारा कंप्यूटर, पुराना कंप्यूटर और अब तुम्हारे रिश्तेदार का कंप्यूटर क्यों ठीक करूँ? तुम खुद को क्या समझती हो? मैंने टेबल पर मुक्का मारा और फैसला किया कि मैं इस बार उसकी मदद नहीं करने वाली।

वास्तव में, मास्टरजी ने मुझे अब तक तीन संकेत दिए थे, उम्मीद है कि मैं उसके प्रति अपनी नाराजगी से छुटकारा पा लूँगी जब मैं एक बार उससे बहुत परेशान हो गयी, तो मास्टरजी ने मुझे सपने में दिखाया कि अगर मैं उसके प्रति अधिक सहनशील हो जाऊँ, तो मुझे देवलोक में सभी देवताओंसे सम्मान मिलेगा । फिर भी, मैं इससे उबर नहीं पायी और उसके प्रति घृणा महसूस करने लगी।

वह जिस भी काम में शामिल होती है, उसे तहस-नहस कर देती और बहुत ही लड़ाकू थी। एक-दूसरे के प्रति आक्रोश, ईर्ष्या और क्रोध से भरे होने के कारण हम साथ नहीं रह पाते। मेरा मानना है कि यह सब हमारे पिछले जन्मों से बने प्रतिकूल पूर्वनिर्धारित संबंधों के कारण है। हम एक-दूसरे के कर्म ऋण के ऋणी थे - यही कारण है कि हम एक-दूसरे को जितना नापसंद करते थे, हम एक-दूसरे से बच नहीं पाते थे। मैंने आखिरकार इस तथ्य को स्वीकार कर लिया कि जब तक मैं ऋण का भुगतान नहीं कर देती, मैं उससे मुक्त नहीं हो सकती। मैं मास्टरजी को फिर से निराश नहीं कर सकती थी। मैंने उसका कंप्यूटर ठीक किया और उसे दूसरे अभ्यासी के घर पर छोड़ दिया ताकि वह उसे ले जाए।

मास्टरजी ने मेरे कंप्यूटर कौशल का उपयोग करके इस कर्म ऋण को चुकाने में मेरी मदद की। सच तो यह है कि मुझे ऋण चुकाने के लिए बहुत कम नुकसान झेलना पड़ा। मास्टरजी ने मुझे एक बार दिखाया था कि मैंने अपने किसी एक पिछले जन्म में एक में किसी व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति की पलकें काटने के लिए भेजकर कर्म संचित किए थे, जिससे वह व्यक्ति एक बहुत ही बुरी स्थिति में आ गया था। मेरी एक पलक कुछ दिनों के लिए फड़कती रही और ऋण चुका दिया गया - बस इतना ही करना पड़ा । मुझे पता है कि यह सब इसलिए है क्योंकि मैंने फालुन दाफा में साधना की है कि मास्टरजी ने मेरे लिए बहुत सी चीजों को व्यवस्थित किया है और देखभाल की हैं। मैं मास्टरजी की बहुत आभारी हूँ।

अब, शांत हृदय और स्पष्ट मन से, मैं देख सकती हूँ कि यह ठीक इसलिए था क्योंकि, वह इतनी सख्त  थी कि मेरी कई नकारात्मक धारणाएँ और आसक्तियाँ प्रकाश में आईं। अगर कोई और होता तो मैं अपनी कमियों को इतनी जल्दी नहीं खोज पाती। उसने जो कुछ भी किया वह मेरे आसक्तियों को लक्षित करता था, और यह देखने के लिए एक परीक्षा थी कि क्या मैं अविचल और अप्रभावित रह सकती हूँ। इस मानवी दुनिया में हमारी सारी कृतज्ञता, भावुकता, घृणा और आक्रोश भ्रम हैं। अगर मुझे वास्तव में साधना करनी है तो मुझे अपने शिनशिंग को बनाए रखने और खुद को विकसित करने की आवश्यकता है। हमेशा दूसरों की कमियों पर ध्यान केंद्रित करने से मुझे बिल्कुल भी मदद नहीं मिलने वाली है।

अगर मैं भावुकता के बोझ तले दबी और भावनाओं में फँसी हुई हूँ, तो मैं स्वयं को छोड़ नहीं पाऊँगी और मास्टरजी की व्यवस्थाओं का पालन नहीं कर पाऊँगी। यह मास्टरजी के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाएगा और उन्हें फ़ा सुधारने में मदद नहीं करेगा। इन सबके आलावा फ़ा और मास्टरजी की योजनाएँ सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण हैं। उन्हें प्राथमिकता देकर, मैं अपने लिए सद्गुण भी जमा कर रही  हूँ।

अपने कौशल और स्वयं से लगाव को छोड़ना

एक अभ्यासी ने कुछ महीनों तक अपने सिस्टम को अपडेट नहीं किया और उसे बार-बार याद दिलाने के लिए एक विंडो पॉप अप हो जाती थी। उसे नहीं पता था कि समस्या क्या थी और उसने मुझसे मदद मांगी। मैं एक सुबह उसके पास गयी और उसे अपडेट डाउनलोड करने और इंस्टॉल करने के चरण दिखाए लेकिन काम पूरा करने के लिए उसे छोड़ दिया। 

उसके घर से जाने के बाद, मुझे याद आया कि उसके कंप्यूटर पर एक सॉफ़्टवेयर की समय-सीमा समाप्त हो गई थी और उसे फिर से इंस्टॉल करने की आवश्यकता थी। उसका ऑपरेटिंग सिस्टम भी पुराना हो चुका था, जिससे सिस्टम की सुरक्षा में बड़ी खामियाँ थीं। उस समय यह अभ्यासी और उसका परिवार एक बड़ी मुसीबत से गुज़र रहा था। मैं जल्द से जल्द उसके लिए इन चीज़ों को ठीक करवाना चाहती थी ताकि उसे चीन की फ़ायरवॉल को बायपास करने और मिंगहुई वेबसाइट तक पहुँचने में कोई समस्या न आए। मुझे पता था कि मिंगहुई पर प्रकाशित लेखो को पढ़ने से इस तरह के कठिन समय में उस परिवार को बहुत मदद मिलेगी। 

हालाँकि मैं उस सुबह ही उससे मिलने गयी थी, लेकिन शाम को मैं फिर से उसके पास गयी। जब मैंने उसे बताया कि मैं उसके कंप्यूटर पर काम करने आयी हूँ, तो उसने मुझे तुरंत अंदर बुलाया। लेकिन जब मैंने उससे उसके कंप्यूटर का पासवर्ड लिखने के लिए कहा, तो वह अचानक ऐसा करने से हिचकने लगी। उसने कहा कि उसे अब मेरी मदद की ज़रूरत नहीं है। मैंने उसे बताया कि सॉफ़्टवेयर की समय-सीमा समाप्त हो चुकी है और उसका सिस्टम सायबर हमलों के लिए कमज़ोर है, लेकिन उसने कहा कि वह किसी और से इस पर नज़र डालने के लिए कहेगी। उसने कहा कि उसे मुझ पर भरोसा है, लेकिन यह स्पष्ट था कि उसे मुझ पर भरोसा नहीं था। ठीक है, अगर उसे मेरी मदद की ज़रूरत नहीं है, तो नहीं है। इसलिए मैं चली गयी।

घर लौटते समय मैं शांत नहीं रह सकी और मेरे मन में तरह-तरह के विचार आने लगे। मुझे इतना अहंकारी और अधीर होने का पछतावा हुआ। मैं अपने बारे में बहुत अच्छा महसूस कर रही थी और मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि दूसरे अभ्यासी मुझ पर भरोसा नहीं करते। यहाँ तक कि मेरे मन में नाराज़गी भी थी—मैं उसके घर वापस जाने और उसकी मदद करने की कोशिश करने के लिए अपने रास्ते से हट गयी। वह संदिग्ध थी। यह सिर्फ़ उसके कंप्यूटर का यूज़रनेम और पासवर्ड है, उसका बैंक खाता नहीं—इसमें इतनी बड़ी बात क्या है? मैंने उससे क्या चुराया होता? मेरे पास पहले से ही वह सभी सॉफ़्टवेयर हैं जो उसने अपने कंप्यूटर पर इंस्टॉल किए थे। मैं क्या कर सकती था? मैं बस यह नहीं समझ पायी कि उसने अचानक अपना मन क्यों बदल लिया। 

लेकिन फिर मुझे लगा। इस अभ्यासी का कंप्यूटर ज्ञान बहुत सीमित है और हो सकता है कि वह पूरी तरह से समझ न पाए कि मैं क्या करने की कोशिश कर रही थी। इसके अलावा, वह मुझे बहुत लंबे समय से नहीं जानती थी। यह स्वाभाविक है कि उसे मेरे बारे में संदेह है क्योंकि वह मुझे इतनी अच्छी तरह से नहीं जानती है। इसके अलावा, उसका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं है। भले ही उसका कंप्यूटर पुराना है और उसका कोई खास मूल्य नहीं है, लेकिन उसके लिए यह एक मूल्यवान संपत्ति हो सकती है। मैं धीरे-धीरे शांत हो गयी क्योंकि मैंने चीजों को उसके दृष्टिकोण से देखना शुरू कर दिया।

मैंने अपने भीतर देखा और खुद को और परखा। सच है, पिछले कुछ सालों में मैं कंप्यूटर का इस्तेमाल करने और उसे ठीक करने में ज़्यादा कुशल और अनुभवी हो गयी हूँ। हालाँकि, मैं इसके कारण आत्मसंतुष्ट और यहाँ तक कि अहंकारी भी हो गयी हूँ। मैं खुद को जानकार और सक्षम समझती थी। जब मैं दूसरे अभ्यासियों की कंप्यूटर के साथ मदद करती थी, तो मैं अवचेतन रूप से खुद को दिखाने और मान्य करने की कोशिश करती थी। 

वास्तव में, मास्टरजी की व्यवस्था और मजबूती के साथ-साथ अन्य अभ्यासियों की मदद ने मुझे ये कौशल हासिल करने में सक्षम बनाया। हाँ, मैंने इंटरनेट पर पढ़ने में समय बिताया और परीक्षण और त्रुटि के माध्यम से सीखा, लेकिन मैंने जो हासिल किया वह मेरे बलिदानों से कहीं अधिक है। मैं "दिग्गजों के कंधों पर खड़ी थी", जैसा कि लोग हमेशा कहते हैं। मुझे दूसरों से लाभ हुआ और इसलिए मेरे पास संतुष्ट होने के लिए कुछ भी नहीं था। इसके बजाय मुझे आभारी होना चाहिए। मैंने अपने कौशल से अन्य अभ्यासियों की मदद की है, लेकिन इस प्रक्रिया में एक लगाव भी विकसित किया है। मदद करने के लिए मेरी प्रेरणा हमेशा शुद्ध नहीं थी और मैंने इसे कभी-कभी मजबूत लगाव के साथ किया है। 

मुझे कंप्यूटर के साथ काम करना और समस्याओं को हल करना पसंद है। मैं इस प्रक्रिया का आनंद लेती हूँ और इससे मिलने वाली उपलब्धि की भावना का आनंद लेती हूँ। दूसरी ओर, मैंने खुद को मान्य भी किया है और इसे करके दिखाया है। इससे मुझे लगा कि मैं दूसरों से बेहतर हूँ। मुझे अच्छा लगा जब लोगों ने मेरा सम्मान किया और मेरे कंप्यूटर कौशल की तारीफ की। 

मुझे काम पूरा करने का शौक था। मैं अभ्यासियों के बीच एक "कंप्यूटर तकनीशियन" के रूप में अपनी भूमिका के पीछे छिप गयी और व्यक्तिगत रूप से दाफा के बारे में सच्चाई को स्पष्ट करने से बचती रही। कंप्यूटर और कंप्यूटर रखरखाव के बारे में सीखने का उद्देश्य दूसरों की मदद करना है, न कि खुद को मान्य करना और अपने अहंकार को बढ़ाना। मैंने इसे पूरी तरह से उलटा कर लिया है। यह अपने मूल में एक स्वार्थी धारणा है। ऐसे अशुद्ध विचारों और उद्देश्यों के साथ, मैं अपने आसक्तियों को बढ़ावा दे रही थी और उन्हें बढ़ने का मौका और जगह दे रही थी।

अगर कंप्यूटर के बारे में मेरा ज्ञान दूसरों के लिए उपयोगी है, तो मुझे उनकी मदद करने के लिए जो कुछ भी कर सकती हूँ, करना चाहिए। अगर यह उपयोगी नहीं है, तो मुझे इसका उपयोग नहीं करना चाहिए - मुझे नाम के लिए इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। कंप्यूटर को ठीक करना फ़ा को सुधारने और खुद को विकसित करने के उद्देश्य से है। मुझे प्रौद्योगिकी के प्रति अपने आसक्ति को छोड़ देना चाहिए। 

इस अहसास के साथ, मेरा समझ में वृद्धि हुई और मुझे तुरंत हल्कापन महसूस हुआ। उदासी का तत्व पूरी तरह से गायब हो गया था। मुझे ऐसा शांत महसूस हुआ जैसे कुछ हुआ ही न हो। "मैं" की अवधारणा खत्म हो गई थी और मैंने "इरादे से मुक्त" होने की अद्भुत स्थिति का अनुभव किया। दाफ़ा साधना वाकई अविश्वसनीय है।

अपनी पसंद और नापसंद को त्यागना और तार्किकता से साधना करना

मेरे परिवार की पुरानी पीढ़ी बौद्ध धर्म में विश्वास करती है, इसलिए हम हमेशा अपने घर में बुद्ध की मूर्तियाँ और तस्वीरें रखते थे। मैंने भाग्य बताने, भूत भगाने और लोगों पर आत्माओं या जानवरों के कब्जे जैसी चीज़ों को प्रत्यक्ष रूप से सुना और अनुभव किया है। प्राथमिक विद्यालय में, मैंने चिगोंग के बारे में किताबें पढ़ीं, एक बौद्ध भिक्षु जिसके पास अलौकिक शक्तियाँ थीं, और पौराणिक कहानियाँ जैसे कि द जर्नी टू द वेस्ट और इनवेस्टीचर ऑफ़ द गॉड्स। मैंने मिडिल स्कूल में चीगोंग अभ्यास की कोशिश की और लोकप्रिय चीगोंग मास्टर्स और साधना समुदाय में सामान्य रुझानों के बारे में पढ़ा। 

मैं हमेशा से ही अलौकिक घटनाओं में दिलचस्पी रखती रही हूँ और चाहती थी कि मैं किसी तरह की अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त कर सकूँ। दाफा साधना करने के बाद, मैंने कुछ अविश्वसनीय चीज़ों का अनुभव किया। अब, मैं फालुन दाफा का अभ्यास करती हूँ क्योंकि मैं साधना करना चाहती हूँ और ऊँचे स्तरों पर पहुँचना चाहती हूँ, लेकिन इसका एक छोटा सा हिस्सा हमेशा जिज्ञासा से प्रेरित रहा है। 

मास्टर जी ने कहा है ,

"कुछ अभ्यासी फा को प्रमाणित करने के लिए मानवीय सोच का अनुसरण करते हैं, और इस प्रक्रिया में वे जो करना चाहते हैं उसे करने की इच्छा को संतुष्ट करते हैं।" ("सतर्क रहें,"  आगे और प्रगति के आवश्यक तत्व III )

मास्टरजी ने इस लेख में "वह करने की इच्छा जो उन्हें पसंद है" का उल्लेख किया है। मैंने अपने बारे में सोचा और महसूस किया कि मेरे मन में हमेशा से यह इच्छा रही है कि मैं वही करूँ जो मुझे पसंद है, यहाँ तक कि जब बात साधना और दाफ़ा कार्य की हो। 

अपनी पसंद और नापसंद के कारण, जब मेरा जुनून खत्म हो गया, तो मैंने साधना करने की अपनी प्रेरणा आसानी से खो दी। मैं सुस्त हो गयी और अपनी तत्परता की भावना खो बैठी। इसका परिणाम यह हुआ कि मैं फा में अध्ययन में निरंतर नहीं रही, अभ्यास नहीं कर पायी और सद्विचारों में कमी आई। मैंने अक्सर सत्य को स्पष्ट नहीं किया क्योंकि मुझे ऐसा करने का मन नहीं था। जब मैं कठिनाइयों में फंस गयी, तो मैंने उनसे बचने की कोशिश की। मैंने केवल वही दाफा प्रोजेक्ट लिए जिनमें मेरी रुचि थी और जिन्हें करने में मुझे मज़ा आया। यही बात दूसरे अभ्यासियों के साथ मेरे व्यवहार पर भी लागू होती है। "अगर बातचीत सुखद नहीं है, तो आधा वाक्य भी बहुत ज़्यादा है।" अगर मैं किसी के साथ नहीं घुल-मिल पाती, तो मैं उससे दूरी बनाए रखती और जितना संभव हो सके उससे दूर रहती। 

जैसे-जैसे मैं साधना करने में आलसी हो गयी और दाफा साधना को गंभीरता से नहीं लिया, मैंने साबित कर दिया कि मैं, बस, साधना में एक “सामान्य व्यक्ति” हूँ। मास्टरजी को उम्मीद थी कि मैं एक ए ग्रेड  की छात्रा बन सकती हूँ, लेकिन मुझे डर है कि मैं डी ग्रेड के लायक भी नहीं हूँ। अलौकिक चीज़ों में मेरी रुचि के कारण मुझे दाफा साधना को अपनाना आसान हो गया, लेकिन यही वह चीज़ है जो मुझे पवित्र और आदरणीय बनने और तर्कसंगत एवं लगन से साधना करने से रोक रही है।

लेकिन क्या यह सिर्फ़ मेरी रुचि है जिसने मुझे इतने सालों तक साधना में प्रेरित और आगे बढ़ाया है? नहीं, वास्तव में नहीं। अभ्यासियों के रूप में, मास्टरजी और फ़ा के साथ हमारे पूर्वनिर्धारित संबंध गहरे हैं। यह समय की शुरुआत में व्यवस्थित किया गया था और पूरे मानव इतिहास में कायम रहा। मैंने दो बार सपना देखा है कि कैसे मैं सुदूर अतीत में उच्च लोकों से इस मानव दुनिया में उतरी। हर बार, मैं फ़ा के लिए आयी थी। 

मास्टरजी ने मुझे दिखाया है कि मैं अपने पिछले जन्मों में कैसे पुनर्जन्म लेती हूँ, और कैसे मास्टरजी के साथ मेरा पूर्वनिर्धारित संबंध इतिहास में कई बार बना और मजबूत हुआ। ये अनमोल और मजबूत संबंध मेरे साथ तब तक रहे जब तक मैंने फ़ा प्राप्त नहीं कर लिया। मास्टरजी ने हमेशा मेरी देखभाल की और मेरा मार्गदर्शन किया, इसलिए मैं साधना में इतनी दूर तक आ पायी। सतही तौर पर, मेरी रुचि ही थी जिसने मुझे दाफ़ा की ओर प्रेरित किया और ले गयी, लेकिन यह अंतिम कारण नहीं है। व्यक्तिगत रुचि केवल मानवीय स्तर पर एक कारक है। जब मैं वास्तव में आगे बढ़ना और उच्च क्षेत्रों में चढ़ना चाहती हूँ, तो मेरी रुचि एक बाधा बन जाती है, इसलिए इसे समाप्त किया जाना चाहिए।

इसी तरह, मुझे समझ में आया कि जब मैं अपनी पसंद और नापसंद से ऊपर उठकर, अपनी भावुकता और भावनाओं को त्यागकर, बाकी सब से ऊपर फा-सुधार को प्राथमिकता देती हूं, और मास्टरजी  मुझसे जो चाहते हैं, उसे अपनी पूरी क्षमता से सामंजस्य में लाती हूं, तभी मैं वास्तव में मास्टरजी की मदद कर सकती हूं। और यही एक दाफा अभ्यासी को करना चाहिए। अगर हम मास्टरजी की व्यवस्था के भीतर अच्छा करते हैं, तो हम बहुत सी चीजें हासिल करेंगे।  शिनशिंग (नैतिकगुणों) साधना एक ठोस चीज है जिससे हम गुजरते हैं, फिर भी इस दुनिया में कई बड़े लाभ प्रकट नहीं हो सकते हैं और हम अपने वर्तमान स्तर या वर्तमान समय में नहीं देख सकते हैं।

एक सुबह, मेरे दिमाग में एक स्पष्ट विचार आया, "प्रकृति के मार्ग का अनुसरण क्या है?" सब कुछ पहले से ही उच्चतर जीवो द्वारा व्यवस्थित किया गया है और हमें बस योजना के साथ चलने की आवश्यकता है। यदि हम अपनी इच्छाओं और वासनाओ को इसमें जोड़ देते हैं, तो हम योजना को बिगाड़ सकते हैं और उन लक्ष्यों और स्तरों तक नहीं पहुँच सकते हैं जिन्हें प्राप्त करने में देवताओं ने हमारी मदद करने का इरादा किया था। 

मैं परिश्रमपूर्वक और दृढ़तापूर्वक साधना करने की आशा करती हूँ तथा अधिक विवेकशील और स्पष्ट-चित्त बनने की आशा करती हूँ, ताकि मास्टरजी को फा को सुधारने में और सचेत जीवो को बचाने में बेहतर सहायता कर सकूँ।