(Minghui.org) प्रसिद्धि, और लोभ की मानवीय भावना के पीछे “स्वार्थ” छिपा है, और ये सभी अहंकार से उत्पन्न होते हैं। ये “मैं” के इर्द-गिर्द घूमते हैं और ये मानवीय मोहभाव हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए।
मास्टर जी ने कहा है ,
“एक साधक के लिए सम्पूर्ण साधना की प्रक्रिया निरंतर मानवीय आसक्तियों को त्यागने की प्रक्रिया है।” (प्रथम व्याख्यान, जुआन फालुन )
20 से अधिक वर्षों तक साधना करने के बाद मुझे लगा कि मैं इनमें से अधिकांश आसक्तियों से छुटकारा पा चुका हूँ, और अपनी साधना के बारे में काफी अच्छा महसूस कर रहा था।
मैंने हाल ही में मिंगहुई का एक लेख पढ़ा जिसमें अभ्यासियों द्वारा लोगों को जागृत करने के लिए बिना थके काम करने के बारे में बताया गया था, और मुझे लगा की मै स्वार्थी हृदय से सत्य को स्पष्ट करता हूँ। जब मुझे यह एहसास हुआ, तो मैंने यह भी देखा कि मुझे डर है कि मैं अच्छा काम नहीं कर पाऊँगा, या मैं पीछे रह जाऊँगा, और अपना सम्मान खो दूँगा। जब यह सब खत्म हो जाएगा और अभ्यासी अपनी साधना पूरी कर लेंगे, तो मेरे लोक में केवल कुछ ही सचेत जीव होंगे।
अगर किसी का मन स्वार्थी है तो लोगों को जागृत करना मुश्किल है। एक सुबह, मैं कुछ लोगों से मिला, जिनके साथ मुझे लगा कि पूर्वनिर्धारित रिश्ता है। लेकिन जब मैंने उनसे बात की, तो उनमें से कुछ पहले ही चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सी.सी.पी.) छोड़ चुके थे, कुछ मुझे देखकर चले गए; और कई लोग सांसारिक चीजों के बारे में बात करते रहे, लेकिन जैसे ही मैंने फालुन दाफा और सी.सी.पी. छोड़ने का जिक्र किया, वे चुप हो गए या चले गए। यह कई दिनों तक ऐसे ही चलता रहा।
मैंने क्या गलत किया? मैं इन लोगों तक संदेश नहीं पहुँचा सका और चिंतित महसूस कर रहा था। मैंने पूरी सुबह कोशिश की और केवल कुछ लोगों की मदद कर पाया। मेरे पास फ़ा का अध्ययन करने का समय नहीं था और मैंने बहुत समय बर्बाद किया। मेरी समस्या क्या थी?
उस शाम मैंने जवाब की तलाश में जुआन फालुन पढ़ना शुरू किया। उपदेश एक खत्म करने के बाद भी मुझे जवाब नहीं मिला, इसलिए मैं पढ़ता रहा। मैंने अनजाने में “स्वार्थ से बाहर निकलें और मानवीय आसक्तियों को दूर करें” वाक्यांश देखा, और मैं इस मूल तथ्यको जानकर हैरान था। मास्टरजी ने जो कहा है, मैं उसे फिर से बेहतर ढंग से पढ़ना चाहता था लेकिन पुस्तक में यह वाक्यांश नहीं मिला। इस अनुभव से मेरी आँखे आंसुओ से भर गयी।
मैंने पाया कि मेरे सत्य-स्पष्टीकरण का उद्देश्य मेरे अहंकार और मेरे स्वार्थ के इर्द-गिर्द घूमता है। अगर यह मेरी शुरुआत है तो मैं लोगों को कैसे जागृत कर सकता हूँ? मुझे लगा की मै अन्य अभ्यासियों पर एक अच्छी छाप छोड़ना चाहता था, और दाफ़ा से लाभ प्राप्त करना चाहता था। ये स्वार्थ और लक्ष्य प्राप्ति के प्रति आसक्ति हैं, जो सबसे बुरी किस्म की आसक्ति है। मैं लोगो को चुनकर उनसे बाते करता हूँ, और केवल उन्ही लोगों से संपर्क करता हूँ जो सभ्य दिखते हैं। मुझे डर से भी लगाव है। ये सभी मानवीय भावनाएँ हैं।
प्रसिद्धि, लोभ और मानवीय भावनाएँ स्वार्थ के ऐसे तत्व हैं जिन्हें त्याग दिया जाना चाहिए। मैंने “स्वार्थ से बाहर आने और मानवीय आसक्तियों को दूर करने” का दृढ़ निश्चय किया”।
अगली सुबह मैं पार्क में गया और 40 साल की एक महिला को देखा। मैंने उसका अभिवादन किया और पूछा कि क्या मैं उसके बगल में बैठ सकता हूँ, और उसने “हाँ” कहा। मैंने सहजता से पूछा कि क्या उसने सी.सी.पी. का त्याग कर दिया है। उसने जवाब दिया, “आप मुझसे ऐसा सवाल क्यों पूछ रहे हैं?”
मैंने कहा, “स्वर्ग सी.सी.पी. को नष्ट कर देगा, और मैं आपकी मदद करना चाहता हूँ! सी.सी.पी. को समाप्त कर दिया जाएगा क्योंकि उसने बहुत सारे बुरे काम किए हैं, जबकि आप पार्टी से संबंध तोड़कर सुरक्षित रहेंगी।”
उसने कहा, “मैं पार्टी की सदस्य हूँ। मैं आपकी बात नहीं मानूँगी, और मैं पार्टी नहीं छोड़ूँगी!” मैंने उसे ठीक से न समझा पाने और उसे परेशान करने के लिए माफ़ी माँगी।
उसका रवैया थोड़ा नरम हुआ, इसलिए मैंने कहा, “अगर एक दिन विपत्ति आती हैं और आपको तबाह कर दे, तो आपका परिवार और आपकी परवाह करने वाले लोग दुखी होंगे। इसलिए मैं आपकी और आपके परिवार की मदद करने की कोशिश कर रहा हूँ। हो सकता है कि आप अभी मेरे शब्दों को समझ न पाएँ, लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि आप नहीं देख सकते कि आगे क्या होने वाला है। यह एक कुछ ही क्षणों की स्थिति है, लेकिन भविष्य में आप समझ जाएँगी, और आपको पछतावा हो सकता है। मेरा सुझाव है कि आप पार्टी से अलग हो जाएँ। यह आपके और आपके परिवार के लिए अच्छी बात होगी!”
मेरे आँखों में आंसू आ गए, इसलिए वह भावुक हो गई। उसने कहा, “मैं सी.सी.पी. और उसके युवा संगठनों की सदस्य हूं। इसलिए मुझे उन सभी को छोड़ने में मदद करें, और आपका धन्यवाद!”
मैंने जवाब दिया, “कृपया मुझे धन्यवाद न दें। हमारे करुणामय मास्टरजी (फालुन दाफा के संस्थापक) हमें सभी के साथ करुणामय व्यवहार करना सिखाते हैं और चाहते हैं कि हम लोगों को जागृत करें।” आइए मास्टरजी को करुणामयी उद्धार के लिए धन्यवाद दें!
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