(Minghui.org) एडम की पुस्तक में, लूसिफ़र ने अपने घमंड के कारण एडम (एक आदमी, जो ईश्वर की छवि में बना था) को नमन करने के ईश्वर के आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया। फिर उसने देवदूत के एक समूह का नेतृत्व करके ईश्वर के खिलाफ विद्रोह कर दिया और अंत में, उसे नर्क में निर्वासित कर दिया गया और वह शैतान बन गया।
निष्कासित देवदूत की कहानी ने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया कि इस अनंत ब्रह्मांड के विभिन्न स्तरों पर सभी जीव सत्य को जानते हैं लेकिन केवल अपने-अपने स्तर तक ही।अंत समय पर महान मार्ग सिखाया जा रहा है, और मास्टर ने सभी सचेत जीवों के लिए उससे भी ऊँचे फ़ा सिद्धांत प्रकट किए हैं। स्वाभाविक रूप से, सभी जीव उन तक प्रबुद्ध नहीं हो सकते।
मास्टर कहते हैं,
"जब दिव्य जीवों ने मनुष्य की रचना की, तो उन्होंने यह सृष्टिकर्ता की इच्छा से किया, ..."
"सृष्टिकर्ता का उद्देश्य दिव्य जीव से मनुष्य को बनवाने का यह था कि अंतिम काल में वह मनुष्य का उपयोग करके सम्पूर्ण ब्रह्मांड के सभी प्राणियों यहाँ तक कि देवदूत को भी उद्धार प्रदान करें।" ("मानव जाति का सृजन कैसे हुआ" से)
मेरा समझना है कि सृष्टिकर्ता ने मनुष्य की रचना इसलिए करवाई क्योंकि अंतिम समय में फ़ा-सुधार के लिए मनुष्य की आवश्यकता थी। यह कार्य इस रूप में क्यों किया गया यह बात तो दिव्य जीव की समझ से भी परे है। इसलिए वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि मनुष्य कितना अनमोल है।
फालुन दाफा अभ्यासी शायद वह सब कुछ न जानते हों जो मास्टर ने हमें सिखाया है, क्योंकि हम भ्रम की अवस्था में साधना कर रहे हैं। आधुनिक विज्ञान, नास्तिक विचारधाराओं और विकृत मतों के प्रभाव के कारण, कई अभ्यासी अनजाने में अब भी पतित धारणाएँ अपने भीतर लिए हुए हैं। यही धारणाएँ हैं जिन्हें हमें दिव्यता की ओर अपने मार्ग में नष्ट करना होता है, और यही हमारे विश्वास के लिए परीक्षाएँ उत्पन्न करती हैं।
यदि हम अपने ज्ञान और धारणाओं के आधार पर उन परीक्षाओं का मूल्यांकन करने लगें जिनका हम सामना करते हैं, या मास्टर द्वारा सिखाए गए सिद्धांतों को परखने लगें, तो हम भी उसी उलझन में पड़ सकते हैं जैसे देवलोक से निष्कासित देवदूत पड़े थे। हमारा मानवीय घमंड और पूर्वाग्रह हमें यह सोचने पर मजबूर कर सकता है कि हम स्वयं चीज़ों का निर्णय कर सकते हैं, जबकि हमें यह भी महसूस नहीं होता कि ऐसा बुद्धि-तर्क आधुनिक विज्ञान पर आधारित है जो कि नास्तिकता की नींव पर खड़ा है और फ़ा को मापने के लिए इसका उपयोग नहीं किया जा सकता।
मैंने कुछ लोगों को देखा है, यहाँ तक कि ऐसे भी जिन्होंने चीन में भीषण दमन को सहा, जो किसी ऐसी बात को लेकर, जो मास्टर ने कही और जिसे वे समझ या स्वीकार नहीं सके, अपना विश्वास त्याग बैठे। फ़ा के आधार पर साधना न कर पाना और मानवीय धारणाओं को नहीं छोड़ पाना, उनके भाग्य में निर्णायक भूमिका निभाता है।
हमारे ऊपर जो भारी मात्रा में कर्म है और पुरानी शक्तियों की व्यवस्थाएँ भी हैं, उनके कारण हम मास्टर की बातों को जितना समझ सकते हैं, वह सीमित है खासतौर पर इस साधारण जगत में जहाँ कुछ ज्ञात नहीं होता। ऐसी स्थिति में हमारे पास केवल एक ही साधन है: एक विनम्र हृदय के साथ, मास्टर और फ़ा में बिना किसी शर्त के विश्वास रखना। यही हमें ऊँचे स्तरों तक ले जाएगा और अच्छे परिणाम दिलाएगा। इसके विपरीत, घमंड, ईर्ष्या और स्व सम्यकता हमें पथभ्रष्ट कर देंगे ठीक वैसे ही जैसे निष्कासित देवदूत की कहानी में हुआ।
ये विचार मेरी वर्तमान समझ पर आधारित हैं। कृपया कोई भी ऐसी बात जो फ़ा के अनुरूप न हो, उसे कृपया इंगित करें।
ऐसे लेख जिनमें साधक अपनी समझ साझा करते हैं, वे आम तौर पर किसी व्यक्ति की उस समय की धारणा को दर्शाते हैं जो उसकी साधना अवस्था पर आधारित होती है, और उन्हें पारस्परिक उत्थान को सक्षम करने की भावना से प्रस्तुत किया जाता है।
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