(Minghui.org) 6 जुलाई, 2025 को रोम में फालुन दाफा साधना अनुभव साझाकरण सम्मेलन आयोजित किया गया। इटली के विभिन्न भागों से पश्चिमी और एशियाई अभ्यासियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया। ग्यारह अभ्यासियों ने पूर्व-निर्धारित व्याख्यान दिए, जिनमें बताया गया कि कैसे उन्होंने समस्याओं का सामना करते समय सद्विचारों के साथ व्यवहार किया, संघर्षों के दौरान अपने भीतर झाँका, और लोगों को बचाते हुए अन्य अभ्यासियों के साथ सहयोग किया। अपने साधना पथों के उतार-चढ़ावों पर उनके सच्चे और ईमानदार विचार इस बात का प्रमाण हैं कि दाफा कितना असाधारण है। जिन अभ्यासियों ने उनके व्याख्यान सुने, उन्होंने भी ऐसा ही महसूस किया और कहा कि सम्मेलन में भाग लेने से उन्हें बहुत लाभ हुआ।

https://en.minghui.org/u/article_images/b33a1ee7104cd884ecbb284872044f25.jpgइटली के फालुन दाफा अभ्यासियों ने 6 जुलाई, 2025 को रोम में एक साधना अनुभव साझाकरण सम्मेलन आयोजित किया।

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https://en.minghui.org/u/article_images/9eb36245b7b12747d639ad165d4721c0.jpgग्यारह अभ्यासियों ने अपने साधना अनुभवों के बारे में बताया।

सदैव आभारी

रोम के एलेसेंड्रो ने 18 साल की उम्र में फालुन दाफा का अभ्यास शुरू किया। उन्होंने बताया कि कैसे वे साधना में परिपक्व हुए और दाफा अभ्यास परियोजना में ज़िम्मेदारी निभाते रहे।

एक साधारण मीडिया कंपनी में उनकी अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी थी। लेकिन, बिना किसी हिचकिचाहट के उन्होंने नौकरी छोड़ दी और द एपोच टाइम्स में तब शामिल हो गए जब वहाँ कर्मचारियों की भर्ती हो रही थी।

एलेसेंड्रो ने बताया कि द एपोच टाइम्स में काम करते हुए उनकी साधना कैसे बेहतर हुई। उन्होंने बताया, "एक परियोजना के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति होने के नाते, मुझे पता था कि एक सामान्य व्यक्ति के कौशल के साथ-साथ मुझे अच्छी साधना भी करनी होगी। मुझे हर विचार पर ध्यान देना चाहिए और अपनी इच्छाओं और आसक्तियों को त्याग देना चाहिए। यह परियोजना की स्थिरता और सफलता से गहराई से जुड़ा है।"

उन्होंने कहा कि इटली में द एपोच टाइम्स का कार्यालय स्थापित करना उनके लिए एक साधना प्रक्रिया थी। सबसे पहले, उन्हें "ज़िम्मेदारी" स्वीकार करनी पड़ी क्योंकि इससे पहले वे बचते रहे थे। उन्होंने इस पद के अनुकूल होने और उसे स्वीकार करने में काफ़ी समय बिताया। उन्हें पता था कि उन्हें "सत्यनिष्ठा" पर काम करना होगा—परियोजना पर दूसरों के सामने ईमानदारी से अपनी बात व्यक्त करनी होगी कि उन्हें क्या सही लगता है, और उन्हें अपनी "सहनशीलता" और "करुणा" में भी सुधार करना होगा।

प्रभारी व्यक्ति होने के नाते, उन्हें कई लोगों और कई बारीकियों का प्रबंधन करना पड़ता है। खासकर कंपनी की स्थापना के शुरुआती दौर में और कानूनी मामलों से निपटने के दौरान, उन्हें अक्सर एक ही समय में तरह-तरह के नोटिस, फ़ोन कॉल या कर्मचारियों की विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता था। इन सबके लिए उन्हें बहुत धैर्य और सहनशीलता की आवश्यकता थी।

नियमित फ़ा अध्ययन के माध्यम से, एलेसेंड्रो अधिक दृढ़ हो गये। उन्होंने बताया, "मैं मास्टर जी का अत्यंत आभारी हूँ। मैं अक्सर खुद से कहता हूँ कि साधना में आने वाली सभी कठिनाइयों और खुशियों के लिए आभारी रहूँ। मुझे पता है कि मैं इस बात को बिल्कुल नहीं भूल सकता। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हर तरह की कठिनाइयों के दौरान, लोग कृतज्ञता का भाव रखना भूल जाते हैं और विपरीत भावनाओं में डूब जाते हैं। मैं अब भी कभी-कभी निराश, अकेला या उदास महसूस करता हूँ जब आसक्ति को छोड़ना मुश्किल होता है, लेकिन मैं खुद को लगातार याद दिलाता रहता हूँ: चाहे कुछ भी हो, अच्छा हो या बुरा, मैं मास्टर जी से मदद और इन कष्टों पर विजय पाने की शक्ति माँगता हूँ।"

रोग कर्म पर विजय

मिलान के श्री जियांग ने एक जानलेवा बीमारी से गुज़रने के बाद जीवन और साधना पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा, "मैंने मरीज़ों को दर्द से कराहते या ज़ोर-ज़ोर से रोते देखा... बीमारी के सामने इंसान कितना छोटा और असहाय लगता है।" उन्होंने आगे कहा, "जन्म, बुढ़ापा, बीमारी और मृत्यु, जीवन अनित्य है। इससे दाफ़ा में मेरा विश्वास और मज़बूत हुआ। मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपनी साधना अच्छी तरह से करनी चाहिए और मानव स्तर से ऊपर उठना चाहिए ताकि मैं मास्टर जी को फ़ा सुधार में बेहतर ढंग से सहायता कर सकूँ और लोगो को बचा सकूँ।"

इस बीमारी ने उन्हें कर्म की भयावहता और विनम्र बने रहने के महत्व का एहसास कराया। उन्होंने बताया कि चाहे आप नायक हों, सम्राट हों या सेनापति, जब आपका कर्म उदय होता है, तो आप तुरंत ही ध्वस्त हो जाते हैं। श्री जियांग ने कहा, "इसलिए, मनुष्यों को अपने बारे में बहुत अधिक नहीं सोचना चाहिए और बुरे कर्म नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे कर्म फलित होते हैं।" उन्होंने आगे कहा, "कर्म व्यक्ति को विवेकहीन बना देता है और उसे सभी प्रकार की भयावह परिस्थितियों में फँसा देता है। अभ्यासी केवल तभी रोग और कष्टों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं जब उन्हें मास्टर जी और फा में विश्वास हो।"

"अहंकार स्वार्थ की अभिव्यक्ति है। यही वह बहाना भी है जिसका इस्तेमाल पुरानी ताकतें मुझे प्रताड़ित करने के लिए करती थीं। मैं मास्टर जी की शिक्षाओं से जानता हूँ कि अभ्यासियों को दूसरों के लिए कार्य करना चाहिए और स्वार्थ से आसक्त नहीं होना चाहिए। हमें मानव जगत में कोई स्वार्थ नहीं रखना चाहिए। मैं मास्टर जी की करुणामयी सुरक्षा के लिए उनका कृतज्ञ हूँ।"

श्री जियांग को यह एहसास हुआ कि मनुष्य पुनर्जन्म के दौरान, जन्म-जन्मांतरों में, अपनी चेतना को शुद्ध करने और दाफा की प्रतीक्षा करने के लिए कष्ट सहते हैं, ताकि या तो साधना का अभ्यास कर सकें या मुक्ति पा सकें। रोग कर्म भोगने की प्रक्रिया ने उन्हें सिखाया कि चीजों को देखने के लिए मानवीय "सिद्धांतों" का उपयोग न करें। उन्होंने समझा कि व्यक्ति को विनम्र और आदरणीय होना चाहिए, फा को सर्वोपरि रखना चाहिए, और केवल फा का पालन करके ही व्यक्ति आसक्तियों को दूर कर सकता है।

सत्य, करुणा और सहनशीलता के अनुसार बच्चों का पालन-पोषण करना

स्लोवाक गणराज्य की मार्सेलाजिया ने साधना अभ्यास के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया, "जब से मेरे बेटे का जन्म हुआ, मैंने उसके साथ एक अभ्यासी की तरह व्यवहार करने की पूरी कोशिश की।" "मुझे पता है कि मास्टर जी ने मुझे एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी है: अपने बच्चे का पालन-पोषण सत्य, करुणा और सहनशीलता के सिद्धांतों के अनुसार करना, उसे दाफ़ा के करीब लाना, और उसे धीरे-धीरे जागृत होने और लगन से साधना अभ्यास करने में मदद करना।"

इस प्रकार, वह अक्सर फा का अध्ययन और  व्यायाम अपने बेटे के पास करती है ताकि वह सुन सके और देख सके कि एक अभ्यासी को किस अवस्था में होना चाहिए। माँ और बेटा धीरे-धीरे हर रात एक साथ फा पढ़ने लगे। शुरुआत में, बच्चे को इसे जारी रखने में कठिनाई हुई और एक पृष्ठ या एक वाक्य भी पढ़ने में संघर्ष करना पड़ा। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, वह फा अध्ययन में बने रहने में सक्षम हो गया। हालाँकि यह अक्सर आसान नहीं होता है, इस प्रक्रिया के माध्यम से, मार्सेलाजिया ने साधना में प्रगति की है और अपने बच्चे के प्रति आसक्ति जैसे कई आसक्तियों को छोड़ दिया है। 3 वर्ष की आयु में, उनके बेटे ने उनसे कहा, "मैं एक दाफा अभ्यासी बनना चाहता हूँ। मैं अपने सभी कर्मों को रूपांतरित करना चाहता हूँ और अपने सच्चे घर लौटना चाहता हूँ।"

मार्सेलाजिया को भी लगा कि जब भी उसके मन में आसक्ति प्रकट होती है, मास्टर जी अक्सर अपने बच्चे के शब्दों का इस्तेमाल करके उसे याद दिलाते हैं। एक बार, एक पर्यटक स्थल पर पर्चे बाँटते समय बारिश होने लगी। वह अपने बेटे को बारिश से बचने के लिए कहीं ले जाना चाहती थी, लेकिन उसने कहा, "मैं डटा रह सकता हूँ।" वे बारिश में भी पर्यटकों से फालुन दाफा के बारे में बात करते रहे।

अधिक चेतन जीवो को बचाने के लिए कड़ी मेहनत करना

आंद्रेई ने बताया कि उनके विचार से एक अभ्यासी को आज की दुनिया में व्याप्त अराजकता को एक अभ्यासी के सद्विचारों के मार्गदर्शन के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा, "हाल ही में दुनिया में बहुत सी घटनाएँ घटी हैं। ये मुझे कई बार विचलित करती हैं। मैं अक्सर बाहरी वातावरण में बदलाव के अनुसार चीजों को व्यवस्थित करना चाहता हूँ। हालाँकि, विचार करने पर, मुझे समझ आया कि चाहे कुछ भी हो जाए, मुझे हमेशा की तरह चलते रहना चाहिए और और भी अधिक चेतन जीवों को बचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। दुनिया चाहे कितनी भी बदल जाए, अभ्यासियों का हमेशा अपना मार्ग होता है। बस इस मार्ग पर अच्छी तरह चलें और सब ठीक हो जाएगा। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इतने वर्षों से फालुन गोंग पर अत्याचार करती रही है, फिर भी चीन में अभ्यासियों ने सत्य को स्पष्ट करना और साधना का अभ्यास करना कभी नहीं छोड़ा। यदि वे इतने कठिन वातावरण में ऐसा कर सकते हैं, तो हमें यहाँ और भी अधिक ऐसा करने में सक्षम होना चाहिए।"

"मैं पहले सामूहिक गतिविधियों पर निर्भर रहता था क्योंकि वे बड़े पैमाने पर होती हैं और उनका प्रभाव बहुत बड़ा होता है। अब, मुझे एहसास हुआ है कि मेरे दैनिक जीवन में लोगों को दाफ़ा के बारे में बताने के कई अवसर हैं। जब मैं यह सोचने का प्रयास करता हूँ कि कैसे अधिक लोगों को दाफ़ा के बारे में बताया जाए, तो नए विचार सामने आते रहते हैं। भले ही वह एक छोटा सा विचार ही क्यों न हो, वह कई रास्ते खोल सकता है।"

उस शाम जब सम्मेलन समाप्त हुआ, तो कई अभ्यासियों ने कहा कि उन्हें बहुत लाभ हुआ और साधना का अर्थ उनके लिए और भी स्पष्ट हो गया। वे इस बात पर सहमत हुए कि केवल फा अध्ययन पर ध्यान देकर, दृढ़ता से साधना का अभ्यास करके, साथी अभ्यासियों के साथ साधना अभ्यास करने के अवसर का आनंद उठाकर, एक एकीकृत काया बनाकर और निरंतर सुधार करके ही वे फा सुधार में मास्टर जी की सहायता करने, लोगो को बचाने और मास्टर जी को निराश न करने के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं।