(Minghui.org) 1997 में मेरे एक सहपाठी ने मुझे फालुन दाफा के बारे में बताया। 1999 के अंत में मैं बीजिंग में दाफा के लिए निवेदन करने गई और मुझे एक श्रम शिविर में भेज दिया गया। क्योंकि मैंने फा (शिक्षाओं) का अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया, मैं समाज की पतनशील धारा में बह गई और एक साधारण व्यक्ति बन गई।

जब 2020 में मैं और मेरी एक सहपाठी एक अन्य सहपाठी के अंतिम संस्कार में गए, तो उसने कहा, “देखो, एक व्यक्ति पल भर में कैसे मर सकता है। मानव जीवन कितना छोटा है। बीस साल बीत गए, लेकिन तुम साधना करने का अवसर खो रहे हो। हमें और कितने अवसर मिलेंगे? कृपया अभ्यास फिर से शुरू करो और पिछला अभ्यास पूरा करो। बाकी सभी अभ्यासी तुम्हें देखने की आशा रखते हैं। मास्टरजी ने तुम्हें नहीं छोड़ा है।”

मैं अभ्यास फिर से शुरू करती हूँ

मैंने सोचा: क्या मैं इस गंदी दुनिया में अपना जीवन यूँ ही बर्बाद करने जा रही हूँ? मेरे पति का ऑपरेशन हुआ था। वे कुछ भी नहीं कर सकते थे और चलने-फिरने में भी असमर्थ थे। कुछ समय बाद, मेरे ससुर लकवाग्रस्त हो गए और मेरी सास की रीढ़ की हड्डी टूट गई। मैंने दिन-रात इन दोनों बुजुर्गों की देखभाल की और मैं पूरी तरह थक गई थी। लेकिन मुझे एहसास हुआ: मैं दाफा की  अभ्यासी हूँ जो फ़ा के लिए आई हूँ। मैं पुरानी शक्तियों द्वारा निर्धारित मार्ग पर नहीं चल सकती। मुझे मास्टरजी का अनुसरण करना होगा। मैं स्वयं को विकसित करना चाहती हूँ और एक सच्ची अभ्यासी बनना चाहती हूँ।

घर लौटते ही मैंने अपनी सारी दाफा पुस्तकें निकाल लीं। मैंने अन्य देशों में मास्टरजी द्वारा दिए गए सभी व्याख्यानों को कालक्रमानुसार व्यवस्थित किया और उन्हें शुरू से ध्यानपूर्वक पढ़ा। मुझे एहसास हुआ कि 20 साल बीत चुके हैं, लेकिन मैं अब भी एक साधारण व्यक्ति ही हूँ। मैंने जुआन फालुन पढ़ी , लेकिन मेरा मन अन्य बातों में उलझा हुआ था, जैसे कि मुझे जल्द ही किराने का सामान खरीदने जाना था; मुझे अपने ससुर के अंडरवियर धोने थे, क्योंकि उन्हें मल त्याग पर नियंत्रण नहीं था; मुझे घर की सफाई करनी थी, फर्श पर पोछा लगाना था और अन्य काम करने थे। जब मैंने दाफा पढ़ी और अभ्यास किए तो मुझे अपने आप में कोई सुधार महसूस नहीं हुआ। दाफा पढ़ते समय मैं शांत नहीं हो पा रही थी। मैं उलझन में थी और मुझे नहीं पता था कि साधना कैसे करूं।

पिछले साल के अंत में, मैं एक अभ्यासी के घर गई जहाँ एक अन्य अभ्यासी फा का पाठ करने आई थी। उन्होंने कहा, “घर पर अकेले फा का अध्ययन मत करो। शाम को मेरे घर आकर फा का अध्ययन करो!”

मैंने जवाब दिया, "मेरे सास-ससुर जल्दी सो जाते हैं। मुझे उनके कपड़े उतारने और उन्हें बिस्तर पर लिटाने में उनकी मदद करनी होगी।"

उन्होंने जवाब दिया, “जब भी समय मिले आ जाइए। दोपहर का समय भी ठीक है, मैं आपके साथ फा का अध्ययन करूँगी।” उनकी दयालुता और निस्वार्थता ने मुझे बहुत प्रभावित किया, और मेरे पास मना करने का कोई कारण नहीं था।

हालाँकि मैंने मौखिक रूप से सहमति दे दी, लेकिन मुझे अपने पति और ससुराल वालों की चिंता सता रही थी। और सच में, जब मैं घर पहुँची और उन्हें अपनी बात बताई, तो वे सब नाराज़ हो गए। मेरा फा का अध्ययन तीन दिन और टल गया। मैंने मास्टरजी से कहा, “मुझे फा का अध्ययन करने जाना ही है। कृपया मेरी मदद कीजिए।”

जिस दिन मैंने पहली बार फा-अध्ययन समूह में भाग लिया, उस दिन अन्य  अभ्यासियों ने अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि वे फा का उपयोग स्वयं का आत्मनिरीक्षण करने के लिए कैसे करते हैं, उनकी कमियों को पहचानते हैं, फा के अनुरूप नहीं चलते और अच्छा प्रदर्शन करने के लिए स्वयं से कड़ाई से अपेक्षा रखते हैं।

जब मैंने फा-अध्ययन समूह छोड़ा, तो मैंने मास्टरजी के फा के बारे में सोचा।

“आपको हमेशा दयालु और शांत हृदय बनाए रखना चाहिए। इससे जब भी कोई समस्या आए, आप उसका सामना अच्छे से कर पाएंगे क्योंकि इससे आपको कुछ हद तक राहत मिलेगी। आपको हमेशा दूसरों के प्रति दयालु और उदार रहना चाहिए और कोई भी काम करते समय दूसरों का ध्यान रखना चाहिए। जब भी कोई समस्या आए, तो सबसे पहले यह सोचें कि क्या दूसरे लोग इसे सहन कर पाएंगे या इससे किसी को दुख होगा। ऐसा करने से कोई समस्या नहीं होगी।” (व्याख्यान चार, जुआन फालुन )

मेरा दिमाग अचानक साफ हो गया, जैसे कोई खोया हुआ बच्चा अपना घर का रास्ता ढूंढ लेता है, और मैं अब भ्रमित नहीं थी।

घर में कदम रखते ही मेरे पति ने सख्त चेहरे से कहा, "घर में एक लकवाग्रस्त बुजुर्ग व्यक्ति है, और तुम्हारे पास अभी भी बाहर जाने का समय है?"

मैं अविचलित रही और शांत भाव से उत्तर दिया, "मैं पिछले कुछ वर्षों से उन दोनों की देखभाल कर रही हूँ, और घर के सारे काम भी मैं ही करती हूँ। मैं बस हर दिन थोड़ी देर के लिए बाहर जाती हूँ, ताकि फा का अध्ययन कर सकूँ।"

“पढ़ने के लिए क्या है?” उसने पूछा। “बस घर पर ही कर लो।”

मैंने कहा, “आज पहला दिन है जब मैं अन्य अभ्यासियों के साथ दाफा का अध्ययन कर रही हूँ, और मुझे तुरंत अपने और उनके बीच का अंतर दिखाई दे रहा है। उनका हर शब्द और हर कर्म दाफा की आवश्यकताओं के अनुरूप है। वे दूसरों के बारे में पहले सोचते हैं, और उनका हृदय शुद्ध और दयालु है। मैं मास्टरजी के निर्देशों का पालन करना चाहती हूँ और एक निस्वार्थ दाफा अभ्यासी बनना चाहती हूँ।” उन्होंने मेरी ओर देखा, मानो वे समझ गए हों।

अगले दिन, मैं अपने ससुर की पैंट धो रही थी तभी मैंने अपनी सास को गुस्से से चिल्लाते हुए सुना, "अपने पिताजी को शौचालय जाने में मदद करो!"

मैं तुरंत सतर्क हो गई और सोचने लगी, “मुझे आत्मनिरीक्षण करना होगा। मैंने ऐसा क्या गलत किया जिससे वह नाराज़ हो गईं?” फिर मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “माँ, नाराज़ मत होइए। अगर मैंने कुछ गलत किया है, तो मुझे बता दीजिए, मैं सुधर जाऊंगी और आपको फिर कभी नाराज़ नहीं करूंगी। एक अभ्यासी के तौर-तरीकों के अनुसार मुझे निरंतर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।” वह मुस्कुराईं।

मैं अक्सर अपनी सास से छोटी-छोटी बातों पर बहस करती थी—मैं खुद को बहुत सही समझने लगी थी और गलत होने पर भी बहस करती थी। जब मेरी स्व:निरिक्षण क्षमता में सुधार हुआ, तो मैंने अंतर्मन मे झाकना सीखा। एक रात मुझे एक सपना आया। एक बड़ी खाई थी, लगभग एक मीटर चौड़ी और गहरी। उसमें एक बड़ा पत्थर था। खाई पार करने के लिए मुझे उस पत्थर पर पैर रखना पड़ा। जब मैं उठी, तो मुझे एहसास हुआ कि मास्टरजी मुझे ज्ञान दे रहे थे, मुझे बता रहे थे कि साधना के लिए मुझे ठोस स्थानों पर पैर रखना चाहिए।

मेरे परिवार ने मुझमें आए सकारात्मक बदलावों को महसूस किया है

एक दिन, खाना रखते समय मुझसे सूप गिर गया। मैंने अपने पति से कहा, “मुझे बहुत अफ़सोस है। मुझसे लापरवाही हो गई। अगली बार मैं ज़्यादा सावधान रहूँगी।” वह एक पल के लिए अचंभित होकर मेरी ओर देखते रहे और फिर बोले, “इतने सालों में मैंने तुम्हें कभी अपनी गलती मानते या माफ़ी मांगते नहीं सुना।”

मैंने जवाब दिया, "दाफा ने ही मुझे बदला है।"

उस दिन बहुत ठंड और तेज़ हवा चल रही थी, लेकिन उन्होंने मुझे फ़ा-अध्ययन के लिए ले जाने पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, “तुम्हें खूब मेहनत से साधना करनी चाहिए। इससे हमारे पूरे परिवार को लाभ होगा।” मैंने उनसे कहा कि हम सब दाफ़ा के लाभार्थी हैं, और हम सब मास्टरजी के परिवार के सदस्य हैं।

मैंने फा का अध्ययन करते हुए और अन्य अभ्यासियों के साथ अनुभव साझा करते हुए अपने शिनशिंग को निरंतर बढ़ाया। मेरा घर ही मेरा साधना स्थल है, और मेरा परिवार वे सचेतन जीव हैं जिनकी रक्षा के लिए मुझे मास्टरजी की सहायता करनी है। वे मुझे परिपक्व होने में मदद कर रहे हैं और मेरा मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। वे मेरे लिए सीढ़ी के समान हैं। मुझे अपने प्रत्येक विचार की तुलना फा से करनी होगी और पूरी लगन और दृढ़ता से साधना करनी होगी।

मेरे ससुर ने मुझमें आए बदलावों को देखकर जुआन फालुन पढ़ने की इच्छा जताई। मेरी सास ने 20 जुलाई, 1999 को उत्पीड़न शुरू होने से पहले फालुन दाफा का अभ्यास किया था, लेकिन बाद में इसे छोड़ दिया। फा अध्ययन समूह से घर लौटने के बाद मैं अक्सर उनसे अपने अनुभव साझा करती थी। उन्होंने फिर से अभ्यास शुरू कर दिया है।

चीनी नव वर्ष की छुट्टियों के दौरान, मेरी सौतेली बेटी मुझसे मिलने आई। उसने बताया कि मेरी सास अक्सर फोन पर उससे कहती थीं कि मुझमें बहुत बदलाव आ गया है। अब मैं उन्हें परेशान नहीं करती और अक्सर माफी मांगती हूँ। मेरी सौतेली बेटी ने कहा, “मेरे पति के परिवार और रिश्तेदार सब आपके बारे में जानते हैं। वे कहते हैं कि आप जैसी बहू होना अद्भुत है, बिना किसी शिकायत के दो बुजुर्गों की देखभाल करना, और यहाँ तक कि उन्हें शौचालय जाने में भी मदद करना। आजकल ऐसी बहुएँ मिलना दुर्लभ है।” मैंने उससे कहा कि मास्टरजी और फ़ा के नियमों के अनुसार, मैंने जो किया है वह पर्याप्त नहीं है। मुझे और अधिक करने की आवश्यकता है। उसने कहा कि मैंने बहुत अच्छा किया और वह अपनी जुआन फालुन  की प्रति निकालकर पढ़ेगी। रात में मुझे एक सपना आया, जिसमें मैं हवाई जहाज में सवार होकर आकाश में उड़ गई।

मैंने फा अध्ययन समूह में फा का अध्ययन करके अपनी मानवीय धारणाओं को बदल दिया है। अब मैं चीजों के बारे में मानवीय धारणाओं से नहीं सोचती, और मैं अक्सर सतर्क रहती हूँ और किसी भी अनुचित विचार को तुरंत पहचान कर उसे सुधार लेती हूँ। फा का अध्ययन करते समय मेरा हृदय शांत रहता है और मैं फा को तर्कसंगत रूप से समझ सकती हूँ। मैंने अपने स्तर पर फा की अभिव्यक्ति देखी। स्वर्ण फालुन अक्सर मेरे सामने चक्कर लगाते हैं।

मास्टरजी मुझे प्रोत्साहित कर रहे हैं। अंततः मुझे साधना का तरीका पता चल गया है। मुझे बचाने के लिए मैं मास्टरजी की आभारी हूँ। और साथी  अभ्यासियों, आपकी सहायता के लिए धन्यवाद।