(Minghui.org) अपने बीस से अधिक वर्षों के साधना अभ्यास पर पीछे मुड़कर देखते हुए, मैं जानती हूँ कि प्रत्येक कदम मास्टरजी की करुणापूर्ण सुरक्षा में रहा है। मैं मास्टरजी की अत्यंत आभारी हूँ कि उन्होंने मेरे कर्मों का निवारण किया, मेरी ओर से कष्ट सहे और “मुझे मेरे देवलोकिय घर की ओर मार्गदर्शन कर रहे।”  यह उनकी असीम कृपा ही है जिसने मुझे आज तक अपने मार्ग पर चलने में सक्षम बनाया है।

एक सद्विचारी मार्ग खोजना

जब मैंने 1995 में फालुन गोंग नामक पुस्तक पढ़ी, तो "साधना" और "अभ्यास" ये दो शब्द मेरे हृदय में बस गए। हालाँकि, अपनी बीमारियों से छुटकारा पाने की तीव्र इच्छा के कारण, मैंने साधारण चीगोंग मास्टर से उपचार करवाने का प्रयास किया—मुझे यह एहसास नहीं था कि मैं जीवन भर का एक सुनहरा अवसर खो रही हूँ।

हालांकि मैं जवान थी, फिर भी मैं कई बीमारियों से ग्रस्त थी और मानसिक रूप से बहुत बोझ महसूस करती थी। ठीक होने की तीव्र इच्छा से प्रेरित होकर, मैंने एक झूठे चीगोंग मास्टर का अनुसरण किया और एक प्रकार की आत्मा-वशीकरण साधना का अभ्यास किया। मेरे स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि मेरी हालत और बिगड़ गई। मैं इतनी भयभीत हो गई कि अंधेरा होने के बाद बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं होती थी और मैंने साधना करना बंद कर दिया।

फरवरी 1996 में, मुझे दो विशेष सपने आए। उनमें से एक में, मास्टरजी जी मुझे एक तालाब के पास ले गए और मुझसे बहुत सारी गंदी चीजें थूकवाईं। अब मुझे पता है कि उन्होंने कभी भी मुझ पर उम्मीद नहीं छोड़ी।

इन सपनों के कुछ समय बाद ही मेरी मुलाकात एक ऐसी महिला से हुई जो फालुन गोंग (फालुन दाफा) का अभ्यास करती थीं। उन्होंने मुझे बताया कि यह एक नेक साधना है और इसके अद्भुत स्वास्थ्य लाभ हैं। फिर उन्होंने मुझे अपने घर आकर अभ्यास सीखने का निमंत्रण दिया। कुछ दिनों बाद, मैं अपने बच्चे को लेकर जिनान गई ताकि मैं मास्टरजी के प्रवचनों की रिकॉर्डिंग सुन सकु और उनसे अभ्यास सीख सकु।

मैंने अपने बच्चे (जो प्राथमिक विद्यालय में था) को सीखने के लिए नहीं कहा था; मैंने तो बस उसे उसका होमवर्क करने के लिए कहा था। लेकिन मास्टरजी के व्याख्यान सुनने के बाद, उसने उस अभ्यासी से कहा, “आंटी, मैं जितना सुनता हूँ, उतना ही अच्छा लगता है। मैं भी सीखना चाहता हूँ।” इसलिए हम दोनों ने साथ-साथ सीखना शुरू किया।

ध्यान करते समय वह पूर्ण-पद्मासन (दोनों पैर क्रॉस करके) में बैठ सकता था। जब हम चौथा व्याख्यान सुन रहे थे, तो उसने कहा, “मैंने एक पार्क देखा जिसमें हरी घास और सब कुछ था!” अभ्यासी मुस्कुराई और बोली, “तुम्हारी त्येनमू (दिव्य नेत्र) खुल गया है!”

कुछ ही समय में, मास्टरजी जी ने हमारे शरीरों को शुद्ध कर दिया। मेरे बच्चे को लगभग हर महीने बुखार और गले में खराश रहती थी और वह लगातार दवाइयाँ खाता रहता था। डॉक्टरों ने बताया कि यह बढ़े हुए टॉन्सिल के कारण था, और यह समस्या 10 साल से अधिक समय तक बनी रही। जब वह बड़ा हुआ तो हमने सर्जरी करवाने पर विचार किया। लेकिन फालुन दाफा का अभ्यास करने के बाद, अगले कुछ महीनों में वह बीमार नहीं पड़ा और उसकी सारी स्वास्थ्य समस्याएं दूर हो गईं। मेरी बीमारियाँ—स्तन का बढ़ना, यकृत में पित्त नलिका की पथरी और पेट में होने वाले दर्दनाक ऐंठन, जिनसे मुझे ठंडे पसीने आते थे—भी ठीक हो गईं। मेरे पति, बच्चा और मैं अत्यंत प्रसन्न हुए। मेरे पति ने हमें लगन से अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित किया।

फालुन दाफा का अभ्यास करने से न केवल मेरा शरीर स्वस्थ हुआ बल्कि मेरे चरित्र में भी सुधार आया। जब मेरे पति यात्रा से लौटे, तो उन्होंने शिकायत की कि रसोई साफ नहीं थी। पहले तो मैं उनसे बहस करती थी। लेकिन इस बार मैंने चुपचाप सफाई की और एक शब्द भी नहीं कहा।

उस शाम, जब मैंने ध्यान किया तो मैं एक गहरी शांति में प्रवेश कर गई और मेरे आस-पास का ऊर्जा क्षेत्र बहुत प्रबल था। मैं धीरे-धीरे शांति की अवस्था में पहुँच गई और अनुभव किया कि फालुन दाफा कितना गहन है। यह अवस्था लगभग 10 दिनों तक रही। मैंने खुशी-खुशी अपने दोस्तों और पड़ोसियों से कहा, "फालुन दाफा वास्तविक है! सभी को इसे सीखना चाहिए—यह अद्भुत है!"

संकट के समय मास्टरजी ने मेरी रक्षा की

जुलाई 1999 में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने फालुन गोंग पर अत्याचार करना शुरू कर दिया और यह अत्याचार व्यापक रूप से फैल गया। कई अभ्यासियों को गिरफ्तार किया गया, पीटा गया, श्रम शिविरों में भेजा गया या जेल की सजा सुनाई गई।

नवंबर 2000 में, मुझे प्रताड़ित किया गया और श्रम शिविर में भेज दिया गया क्योंकि मैंने अभ्यास करना बंद करने से इनकार कर दिया था। पहले मुझे एक ठंडी, हवादार इमारत में रखा गया और मुझे ऊपर की चारपाई पर सोना पड़ता था। रात में छत से आती ठंडी हवा मुझे स्तब्ध कर देती थी। मुझे लगातार खांसी आती थी और जल्द ही मुझे एक गंभीर बीमारी जैसी स्थिति हो गई जो हर कुछ दिनों में बढ़ जाती थी। मेरे हाथ-पैर दुखते थे, हड्डियां दुखती थीं और दिल जकड़ा हुआ महसूस होता था। सोने से पहले मुझे कई बार बाथरूम जाना पड़ता था। ये दौरे अधिक बार होने लगे और मुझे मुश्किल से ही आराम मिलता था।

मेरी कोठरी कि साथियों ने देखा कि मैं कितनी कमजोर हो गई थी और उन्होंने पहरेदारों को बताया। जेल के अस्पताल में, डॉक्टरों को मेरे फेफड़ों पर धब्बे मिले और लाल रक्त कोशिकाओं की मात्रा कम पाई, और उन्हें लगा कि मुझे रक्त संबंधी कोई बीमारी है। उन्होंने सलाह दी कि मैं स्पाइनल टैप परीक्षण के लिए किसी बड़े अस्पताल जाऊँ। मैंने कुछ क्षण सोचा और उन्हें कहा, “मैं नहीं जाऊँगी। मुझे जल्द ही रिहा कर दिया जाएगा।”

मन ही मन मैं जानती थी कि यह कोई वास्तविक बीमारी नहीं है—यह तो उत्पीड़न का परिणाम था। क्योंकि मैंने मास्टरजी और दाफा की असाधारण शक्ति में दृढ़ विश्वास रखा, मैं बस घर लौटकर साधना और फ़ा का अध्ययन करना चाहती थी।

घर लौटने के कुछ दिनों बाद, मैंने फा का अध्ययन फिर से शुरू किया, अभ्यास किए और सद्विचार भेजे। मैंने एक गंभीर घोषणा भी लिखी: श्रम शिविर में मैंने जो कुछ भी लिखा या कहा जो अपमानजनक था और फा के अनुरूप नहीं था, वह पूरी तरह से अमान्य है। मेरा वजन 60 किलोग्राम से घटकर लगभग 45 किलोग्राम रह गया। शुरुआत में, अगर मैं दिन में थोड़ा ज्यादा चल लेती थी, तो शाम तक मुझे थकान और शरीर में दर्द महसूस होता था।

लेकिन मैंने कभी इसे बीमारी नहीं समझा और न ही इसके इलाज के बारे में सोचा—ये विचार मेरे मन में कभी आए ही नहीं। हालाँकि मेरे पति ने कभी मेरे अभ्यास का विरोध नहीं किया, फिर भी मैंने उन्हें अपनी सेहत के बारे में नहीं बताया क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि वे परेशान हों। मैं बस फा का अध्ययन करने, अभ्यास करने और सद्विचार भेजने पर ध्यान केंद्रित करती रही।

जब भी मुझे मौका मिला, मैंने लोगों को बताया कि फालुन दाफा कितना अद्भुत है, कि यह लोगों को अच्छा बनना सिखाता है, सत्यनिष्ठा, करुणा और सहनशीलता के साथ जीना सिखाता है, और यह कि इसे अन्यायपूर्ण तरीके से प्रताड़ित किया गया है।

जब भी दर्द वापस आता, मैं ध्यान करती थी। हर बार ध्यान करने से लक्षण कम हो जाते थे और मैं बार-बार बाथरूम जाने की समस्या को नियंत्रित कर पाती थी। जैसे-जैसे मैं अध्ययन और अभ्यास करती गईं, ये दौरे दो-तीन दिन में एक बार से घटकर कभी-कभार ही होने लगे। एक बार ध्यान करते समय मुझे अपने पैरों के तलवों से ठंडी हवा की धाराएं बहती हुई महसूस हुईं। उसके बाद, मेरे सारे दर्द, सीने में जकड़न और अन्य सभी तकलीफें पूरी तरह से गायब हो गईं।

रक्त संबंधी बीमारियों का इलाज बहुत मुश्किल होता है—लेकिन फालुन दाफा ने मुझे ठीक कर दिया। दाफा के बिना, मैं कल्पना भी नहीं कर सकती कि क्या होता। मास्टरजी जी ने मेरे कर्मों का नाश किया, मेरे लिए कष्ट सहे और मेरी जान बचाई। धन्यवाद, मास्टरजी! धन्यवाद, दाफा! मास्टरजी जी महान हैं, दाफा महान हैं और दाफा की शक्ति वास्तव में असीम है!

मास्टरजी ने हम पाँचों को बचा लिया

बसंत के शुरुआती दिनों में, मेरे पति के बड़े भाई और उनकी पत्नी हम तीनों के परिवार के साथ प्रांतीय राजधानी गए। मेरे पति गाड़ी चला रहे थे। जब हम एक पुल पर पहुँचे, तो गाड़ी अचानक दाईं ओर रेलिंग की तरफ मुड़ गई। मेरा सिर ज़ोर से कार की खिड़की से टकराया। घबराकर मेरे पति ने स्टीयरिंग व्हील को झटका दिया, जिससे गाड़ी बाईं ओर की रेलिंग से जा टकराई। उस नाजुक क्षण में, मैंने चिल्लाकर कहा, “फालुन दाफा अच्छा है! सत्यनिष्ठा-करुणा-सहनशीलता अच्छी है! हे मास्टरजी, कृपया हमें बचाएँ!”

कार के फ्यूल टैंक से ईंधन लीक होने लगा और एयरबैग खुल गए। मेरी भाभी बेहोश हो गईं और मेरे देवर ने उन्हें होश में लाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो नहीं उठीं। तभी मैंने देखा कि मेरे साथ गाड़ी में बैठा मेरा बच्चा पास आया और उसी क्षण मेरी भाभी ने अपनी आँखें खोलीं और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। उस समय मैंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। घर पहुँचकर मेरे बच्चे ने मुझसे कहा, “माँ, जब मैंने देखा कि आंटी नहीं उठ रही हैं, तो मैंने मन ही मन मास्टरजी से प्रार्थना की, ‘हे मास्टरजी, मेरी आंटी को बचा लीजिए।’ और उसके तुरंत बाद वो उठ गईं। यह सचमुच अद्भुत था!”

मुझे पता था कि यह दुर्घटना पुरानी ताकतों द्वारा रची गई एक साजिश थी, लेकिन मास्टरजी ने हमारी रक्षा की और हमारी जान बचाई—उन्होंने हमारे लिए कष्ट सहा!

पुल लगभग पाँच मीटर ऊँचा था। अगर कार रेलिंग के ऊपर से गिर जाती, तो भयानक स्थिति हो जाती। अगर हमारे पीछे कोई और कार होती, तो भी हादसा बहुत बुरा होता। मेरे बच्चे और मुझे छोड़कर बाकी सभी लोग किसी न किसी हद तक घायल हो गए।

एम्बुलेंस मेरे पति, देवर और उनकी पत्नी को जांच के लिए अस्पताल ले गई। मैं और मेरा बच्चा ट्रैफिक पुलिस का इंतज़ार करते रहे। जब पुलिस वाले आए और उन्होंने देखा कि कार कितनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई है, तो उनमें से एक ने कहा, “यह अविश्वसनीय है कि किसी को गंभीर चोट नहीं आई। आप बहुत भाग्यशाली हैं—ज़रूर देवतागण की कृपा रही होगी!” उसने बार-बार यही बात दोहराई।

मुझे पता था कि मेरे पति और उनकी भाभी पहले ही सीसीपी छोड़ चुके थे, और मैं और मेरा बच्चा दाफा के अभ्यासी हैं, इसलिए मास्टरजी जी ने ही हम पाँचों की रक्षा की। उनके भाई ने अभी तक सीसीपी नहीं छोड़ी थी, लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने भी छोड़ने का फैसला कर लिया। घर पहुँचकर, मैं और मेरा बच्चा मास्टरजी जी के चित्र के सामने खड़े हुए और हमें बचाने के लिए उनका धन्यवाद किया।

दाफा की शक्ति का अनुभव करना

मेरे परिवार में एक अभ्यासी में रोग कर्मों के लक्षण दिखाई दिए। क्योंकि मैं भावुकता में डूबी हुई थी और स्वयं को फ़ा के अनुरूप नहीं परख पाई, इसलिए पुरानी शक्तियों ने इस कमी का फायदा उठाया। मैं बहुत चिंतित थी और रो भी पडी। मेरा हृदय भारी था और मैं इसके बारे में सोचना बंद नहीं कर पा रही थी। अगली सुबह, मेरे दोनों फेफड़ों में दर्द होने लगा। तभी अचानक मेरे मन में एक विचार आया: “मेरा जीवन दाफ़ा का है। इसका पुरानी शक्तियों से कोई लेना-देना नहीं है।” मैंने इसे कई बार दोहराया और मेरी हालत में थोड़ा सुधार हुआ।

हालांकि, दूसरे लोकों से आए बुरे विचार मुझ पर हावी होने लगे। मेरा मन पुरानी शक्तियों द्वारा थोपे गए नकारात्मक विचारों से भर गया था। संयोग से, यह किंगमिंग उत्सव (पूर्वजों की समाधि की सफाई) का दिन था और मेरे रिश्तेदारों द्वारा पूर्वजों के लिए आयोजित शोक सभा समाप्त करने के बाद, हमने साथ मिलकर भोजन किया। माहौल ने मुझे भावुक कर दिया और मेरी आँखों में आँसू आ गए। नकारात्मक विचार फिर से मेरे मन में छा गए। मैंने उनका विरोध करते हुए कहा, "तुम मैं नहीं हो। मैं ऐसा नहीं सोचती।" लेकिन मेरा ' शिनशिंग' (आध्यात्मिक संतुलन) देवलोकिय आस्था में निहित नहीं था, और मैं उन बुरे विचारों को पूरी तरह से नकार नहीं सकी। यह कष्टदायक था, लेकिन मैंने सहन किया और भोजन पूरा किया।

जब मैं घर लौटी, तो मास्टरजी ने मुझे फा का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। इसलिए, मैंने दुनिया भर में दिए गए उपदेशों के संग्रह , खंड IV की पुस्तक उठाई और पहली कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार थीं:

“निश्चित रूप से, हम उन सभी चीजों को स्वीकार नहीं करते जो पुरानी शक्तियों ने व्यवस्थित की थीं—मैं, आपका मास्टर होने के नाते, उन्हें स्वीकार नहीं करता, और दाफा के शिष्य भी निश्चित रूप से उन्हें स्वीकार नहीं करते।” (“ 2004 शिकागो फा सम्मेलन में दिया गया फा उपदेश”)

इसे पढ़ने के बाद, मुझे तुरंत ही अपने सारे बुरे विचार और बाधाएँ दूर होती महसूस हुईं— मास्टरजी के दाफा ने उन्हें मिटा दिया। दाफा की शक्ति, पवित्रता और सामर्थ्य का वह अद्भुत अहसास, शब्दों से परे है!

मैंने इस अनुच्छेद को याद किया और इसे बार-बार दोहराती रही। जितना अधिक मैंने अध्ययन किया, उतना ही मेरा मन स्पष्ट होता गया। मुझे पता चल गया कि परीक्षा का सामना कैसे करना है।

मैं मास्टरजी जी की करुणापूर्ण मुक्ति के लिए सदा आभारी हूँ—कि उन्होंने मुझे अपने इस अंतिम समय में सबसे दुर्लभ खजाना, दाफा प्राप्त करने का अवसर दिया। मैं दाफा का लगन से अध्ययन करूँगी, अपने भीतर गहराई से झाँकूँगी, तीनों काम का भली-भांति पालन करूँगी, अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करूँगी और मास्टरजी जी के साथ अपने सच्चे घर लौट जाऊँगी ।