(Minghui.org) मैं अब एक सीनियर हाई स्कूल की छात्रा हूँ। मैं शुक्रगुज़ार हूँ कि मैं इस भौतिकवादी संसार से पूरी तरह दूषित नहीं हुई। यह सब मेरे बचपन के माहौल का प्रतिबिंब है। मेरे माता-पिता और दादी फालुन दाफा अभ्यासी हैं, और हमारे घर में हमेशा दूसरे अभ्यासी आते-जाते रहते हैं। इसलिए मुझे साधना अभ्यास से जुड़ी हर चीज़ का ज्ञान था।

जब मैं प्राथमिक विद्यालय में थी, तो मैं कभी-कभी अपने परिवार के साथ फा का अध्ययन करती थी, लेकिन मेरी समझ सतही थी, और मैं वास्तव में इसके महत्व को नहीं समझ पाई थी। मेरे अभ्यास करने और सद्विचार भेजने की क्षमता भी सीमित थी। माध्यमिक विद्यालय में प्रवेश के बाद, अपने चंचल स्वभाव और अपने मित्रों के प्रभाव के कारण, मैंने धीरे-धीरे फा का अध्ययन करना बंद कर दिया। सद्विचार भेजने और अभ्यास करने की मेरी दृढ़ता भी समाप्त हो गई। हाई स्कूल में, मैं और भी अधिक शिथिल हो गई। समय के साथ, मुझमें सभी प्रकार के बुरे, रोज़मर्रा के व्यवहार प्रकट होने लगे।

हालाँकि, हमारे करुणामयी मास्टर ने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। उन्होंने मुझपर कृपादृष्टि बनाये रखी और मेरा मार्गदर्शन करते रहे हैं, मुझे सांसारिक संसार के रसातल में पूरी तरह गिरने से बचाते रहे हैं। नीचे मेरे कुछ अनुभव दिए गए हैं जिन्हें मैं मास्टरजी और अन्य अभ्यासियों के साथ साझा करना चाहूँगी।

धूम्रपान छोड़ना

मैं चेहरा बचाने के प्रति बहुत सजग हूँ, इसलिए मुझे दूसरों के अनुरोध ठुकराना पसंद नहीं था। मुझे याद है जब हाई स्कूल के दूसरे साल के दूसरे हिस्से में मेरी कक्षा बदली गई थी। मैं और मेरी सबसे अच्छी दोस्त अलग हो गए थे, लेकिन हम संपर्क में रहे। एक दिन, वह आई और मुझे सिगरेट ऑफर की। मैंने मना कर दिया, लेकिन उससे पूछा कि क्यों। उसने कहा कि बाकी सभी लोग सिगरेट पीते हैं, और वह भी पीना चाहती थी। जब उसने दोबारा पूछा, तो उसकी यह बात सुनकर मैं भावुक हो गई कि लगभग सभी लोग सिगरेट पीते हैं। मुझे लोगों के साथ चलना और सबको दिखाना अच्छा लगता था कि मैं "अप-टू-डेट" हूँ, इसलिए मैं मान गई और उसके साथ सिगरेट पीने लगी और जल्द ही मुझे इसकी लत लग गई।

रोज़ाना एक सिगरेट पीने की मेरी आदत बढ़कर दो या तीन हो गई। मेरी माँ मुझे काफ़ी पैसे देती थीं, इसलिए मैं एक के बाद एक पैकेट सिगरेट खरीदती गई और धीरे-धीरे इसकी लत लग गई। मेरा दिमाग़ धुंधला हो गया था, और मैं पूरी तरह भूल गई थीं कि मैं एक अभ्यासी हूँ और मैंने फ़ा की पढ़ाई बंद कर दी। एक रात घर पहुँचने पर, मेरी माँ ने मुझसे पूछा कि मुझसे सिगरेट की गंध क्यों आ रही है। खुद को दोषी महसूस करते हुए, मैंने झूठ बोला और कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि दूसरे छात्र गलियारे में धूम्रपान कर रहे थे। उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा।

रात को बिस्तर पर लेटे हुए, ज़ुआन फालुन  में मास्टरजी की शिक्षाएँ मेरे मन में कौंध गईं। मैं समझ गई कि एक अभ्यासी होने के नाते, मैं धूम्रपान नहीं कर सकती, इसलिए मैंने इसे छोड़ने का संकल्प लिया। शुरुआत में यह सचमुच बहुत कष्टदायक था, खासकर जब धूम्रपान की इच्छा फिर से लौट आई। मैं चिंता में इतना डूबी हुईं थीं कि मैं अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही थी, और मेरा स्वभाव बेहद उग्र हो गया था। लेकिन मुझे पता था कि यह कुछ ऐसा है जिसे मुझे सहना ही होगा, इसलिए मैंने लगन से खुद पर नियंत्रण रखा और "फालुन दाफा अच्छा है, सत्य, करुणा और सहनशीलता अच्छी है" का पठन किया। मास्टरजी की मदद से, मैंने सफलतापूर्वक धूम्रपान छोड़ दिया और तब से इसके बारे में कभी नहीं सोचा।

मेरी फ़ोन की लत

मोबाइल फ़ोन वाकई बहुत नुकसानदेह हैं। हाई स्कूल के दूसरे साल में, कुछ समय के लिए, मैं जापानी एनीमे और उपन्यासों की दीवानी हो गईं थी, और कभी-कभी टिकटॉक पर वीडियो भी देखती थी। न सिर्फ़ मैंने अनगिनत घंटे बर्बाद किए, बल्कि अश्लील और हिंसक दृश्य लगातार मेरे दिमाग़ में घूमते रहते थे, मेरी वासना को भड़काते रहते थे।

मैंने कक्षा में ध्यान देना बंद कर दिया था, क्योंकि मेरा मन स्कूल के बाद क्या देखूँगी इसी में उलझा रहता था। हर दिन मैं अपने फ़ोन से खेलती, आकर्षक लड़कों को देखती, या उपन्यास पढ़ती। उनकी कहानियाँ मुझे रुला देतीं और हँसी से लोटपोट कर देतीं। मैं बिल्कुल एक सामान्य इंसान रही, और मेरा मूड अस्थिर हो गया था।

एक रात, मैंने सपना देखा कि एक बहुत ही खूबसूरत लड़का मेरा हाथ थामे हुए मुझे चूमने की कोशिश कर रहा है। जब मैं उठी, तो मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया और थोड़ा खुश हो गई। अब जब मैं इसके बारे में सोचती हूँ, तो मुझे शर्म आती है। लेकिन उस समय मुझे एहसास ही नहीं हुआ था कि मैं अपने फ़ोन पर इतना समय बिता रही हूँ। यहाँ तक कि जब मेरी माँ ने मुझे फ़ोन इस्तेमाल करने से मना किया, तब भी मैं अपनी इच्छाओं को पूरा करने के बहाने ढूँढ़ लेती थी।

यह देखकर कि मैं समझ नहीं पा रही हूँ, मास्टरजी मुझे संकेत देते रहे। मैंने कई बार ऊँची इमारत से गिरने का सपना देखा, जिससे मैं चौंक गई। मैंने अपनी माँ को अपने सपनों के बारे में बताया, और उन्होंने कहा, "मास्टरजी तुम्हें ज्ञान दे रहे हैं। क्या तुमने हाल ही में कुछ गलत सोचा है?" अचानक, "सेलफ़ोन" शब्द मेरे दिमाग में आया, और मैं समझ गई। मुझे फ़ोन का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए और उसे खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए। साथ ही, मुझे एहसास हुआ कि मुझे वासना से बहुत लगाव है। मुझे पता था कि मुझे इससे छुटकारा पाना होगा।

आम लोगों के बीच, जो व्यक्ति पढ़ाई न करके फ़ोन पर खेलने में व्यस्त रहता है, उसे एक घटिया विद्यार्थी माना जाता है। साधना अभ्यास में तो यह और भी ज़्यादा सच है। अगर मैं ये तीन चीज़ें ठीक से नहीं करती, फ़ोन का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करती हूँ, और मास्टरजी के नियमों का पालन नहीं करती, तो मैं सच्चा अभ्यासी नहीं हूँ। इसलिए, मैंने अपने फ़ोन से सभी अनुपयुक्त ऐप्स निकाल दिए।

उसके बाद भी, कभी-कभी मेरा मन उससे खेलने को करता था। मुझे पता था कि मैं नहीं, बल्कि फ़ोन के पीछे का प्रेत चाहता है कि मैं उसे देखूँ। इसलिए, जब भी मुझे ऐसा करने की इच्छा होती, मैं उस विचार को दूर कर देती। अगर वह विचार फिर से आता, तो मैं उसे तुरंत दूर कर देती। समय के साथ, ये विचार लगभग गायब हो गए। मैंने पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया, और मेरे दिन पूरे होने लगे। मैं अब पहले जैसी उलझी हुयी सी नहीं रही। मास्टरजी, आपके संकेतों के लिए धन्यवाद!

अपने चरित्र का विकास करना

एक शाम स्कूल में सेल्फ-स्टडी के दौरान, मेरी सहपाठी, जो मेरे साथ डेस्क शेयर करती थी, नहीं थी, इसलिए मेरी दोस्त मा मेरे बगल में बैठना चाहती थी। क्लास खत्म होने और सब बातें करने की वजह से, मैं उसकी आवाज़ साफ़ नहीं सुन पा रही थी। मुझे लगा कि वह चाहती है कि पिंग नाम की एक और सहपाठी मेरे बगल में बैठे। मुझे पिंग ज़्यादा पसंद नहीं थी, इसलिए उसे अपने बगल में बैठने से रोकने के लिए, मैंने खाली स्टूल मेज़ के नीचे सरका दिया। फिर मा को लगा कि मैं नहीं चाहती कि वह मेरे बगल में बैठे और वह नाराज़ हो गई।

मैंने समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी और झगड़ा करने लगी। मैंने सोचा, "सब कुछ समझाने के बाद भी तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो?" मुझे बहुत बुरा लगा, लेकिन मैंने ज़ाहिर नहीं किया। मा के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखने की चाहत में, मैंने उनसे माफ़ी माँगी और हमने सुलह कर ली।

लेकिन मैं अब भी आश्वस्त नहीं थी और खुद को एक अभ्यासी नहीं मानती थी।

इस घटना से मुझे एहसास हुआ कि मुझमें एक गहरी प्रतिस्पर्धी मानसिकता थी और मैं अपनी ग़लती मानने से इनकार करती थी। मैं दूसरों के प्रति तिरस्कार भी रखती थी—ऐसी चीज़ जिससे मुझे छुटकारा पाना चाहिए। मैं इस घटना से उबर नहीं पाई, और बाद में ही मुझे एहसास हुआ कि एक अभ्यासी होने के नाते, मुझे अपने भीतर झाँकने की ज़रूरत है। इससे मुझे सचमुच शर्मिंदगी महसूस हुई। मुझे हमेशा याद रखना चाहिए कि पहले अपनी कमियों पर ध्यान देना चाहिए।

एक और बार, मैंने स्नैक्स का एक पैकेट खरीदा और अपनी दोस्त लिन को दे दिया। मुझे लगा कि वह मुझे भी कुछ देगी, लेकिन उसने नहीं दिया। मैं परेशान होने लगी, सोचने लगी, "मैंने तुम्हें स्नैक्स दिए थे, तुमने मुझे क्यों नहीं दिए? क्या तुम्हें पारस्परिकता समझ में नहीं आती?"

लेकिन कुछ देर बाद, मुझे एहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ है। क्या यह सचमुच मेरे लालच और खाने की इच्छा को खत्म करने में मेरी मदद नहीं कर रहा था? मुझे एहसास हुआ कि मुझमें पेटूपन की भावना बहुत प्रबल थी। क्योंकि मुझे मांस बहुत पसंद है, मैं लगभग हमेशा दोपहर में मांस का कोई व्यंजन खाती थी। अगर नहीं, तो मैं बहुत कम खाती थी। हालाँकि ज़्यादातर लोग इसे खाने में नखरेबाज़ी मान सकते हैं, लेकिन एक अभ्यासी के लिए यह एक गहरी आसक्ति है। मैंने इससे छुटकारा पाने का संकल्प लिया और मास्टरजी की शिक्षा का पालन किया:

"...हालाँकि, अब मांस आपको स्वादिष्ट नहीं लगेगा। अगर यह घर पर पकाया गया है, तो आप इसे अपने परिवार के साथ खाएँगे, और अगर यह घर पर नहीं पकाया गया है, तो आपको इसकी कमी महसूस नहीं होगी।" (व्याख्यान सात, ज़ुआन फालुन )

ऐसा लगता है कि मैं अभी भी इस आसक्ति से छुटकारा पाने की कोशिश कर रही हूँ। यह मेरा स्वभाव नहीं है, और मैं इसे नहीं चाहती । मैं इसे खत्म करना चाहती  हूँ और एक सच्चा अभ्यासी बनना चाहती हूँ।

यह मेरा पहला साझा लेख है। कृपया कोई भी अनुचित बात बताएँ।