(Minghui.org) फालुन दाफा अभ्यासियों ने 16 सितंबर, 2025 को बेंगलुरु शहर के आईएफआईएम लॉ कॉलेज में पुरस्कार विजेता वृत्तचित्र हार्ड टू बिलीव (Hard to Believe) को प्रदर्शित करने के लिए डॉक्टर्स अगेंस्ट फोर्स्ड ऑर्गन हार्वेस्टिंग (डीएएफओएच) भारत शाखा के साथ साझेदारी की। यह वृत्तचित्र चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के अंग प्रत्यारोपण उद्योग को उजागर करता है।

उप-प्रधानाचार्य शगुफ्ता अंजुम, संकाय सदस्यों और छात्रों के साथ, स्क्रीनिंग में शामिल हुईं। वे चीन में विवेक के कैदियों के अंगों की बड़े पैमाने पर अवैद्य तरीके से जबरन निकालने के बारे में जानकर स्तब्ध रह गईं और उन्होंने गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने इस अपराध को मानवता के विरुद्ध नरसंहार से कम नहीं बताया। यह पहली बार था जब उन्होंने अपने पड़ोसी देश चीन में हो रहे इन अत्याचारों के बारे में सुना।

लगभग सभी उपस्थित लोगों ने G7+7 जबरन अंग-हरण याचिका पर हस्ताक्षर किए, जिसमें G7+7 देशों से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा धार्मिक लोगों को निशाना बनाकर अवैद्य तरीके से जबरन अंग निकालने के राज्य-स्वीकृत अपराध को समाप्त करने का आवाहन किया गया है। [संपादकीय टिप्पणी: G7 देश संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और यूनाइटेड किंगडम हैं। +7 देश अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, भारत, इज़राइल, मेक्सिको, दक्षिण कोरिया और ताइवान हैं।]

दाएं से बाएं: डीएएफओएच सदस्य, डॉ. गिरिधर, जोस जॉनी, और विपिन मुडेगौडर, फालुन दाफा अभ्यासी चित्रा देवनानी, और आईएफआईएम लॉ कॉलेज की उप-प्राचार्य डॉ. शगुफ्ता अंजुम (दाएं से 5वें) और उनके संकाय।

एक फालुन दाफा अभ्यासी ने छात्रों के साथ बातचीत की जब वे मिंगहुई विशेष प्रकाशनों और पुस्तक ' हाउ द स्पेक्टर ऑफ कम्युनिज्म इज़ रूलिंग अवर वर्ल्ड' (How the Specter of Communism Is Ruling Our World)को देख रहे थे ।

DAFOH प्रतिनिधि: हमें इतिहास के सही पक्ष पर होना चाहिए

डीएएफओएच (DAFOH) इंडिया के प्रमुख और फालुन दाफा का अभ्यास करने वाले पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. विपिन मुडेगौडर ने कहा कि जागरूकता पैदा करना पहला कदम है। "हमारा मानना है कि डॉक्टरों, वकीलों और स्नातकों का नैतिक और पेशेवर कर्तव्य है कि वे एक रुख अपनाएँ, और ऐसा करके वे खुद को इतिहास के सही पक्ष में रखते हैं।"

संकाय सदस्यों ने इस अत्यावश्यक मानवीय चिंता पर जागरूकता बढ़ाने और संवाद को बढ़ावा देने तथा अपने छात्रों को करुणा और साहस के साथ न्याय करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए डीएएफओएच इंडिया को धन्यवाद दिया।

छात्रों और प्राध्यापकों ने आईएफआईएम लॉ कॉलेज ऑडिटोरियम में हार्ड टू बिलीव डॉक्यूमेंट्री देखी ।

स्क्रीनिंग के बाद डॉ. विपिन ने प्रश्नोत्तर सत्र आयोजित किया।

आईएफआईएम लॉ कॉलेज की वाइस प्रिंसिपल डॉ. शगुफ्ता अंजुम के साथ डॉ. गिरिधर

सहायक प्रोफेसर: एक आंखें खोल देने वाली डॉक्यूमेंट्री

सहायक प्रोफेसर शारू अन्ना जॉन ने कहा कि सत्र प्रभावशाली था और वृत्तचित्र आंखें खोलने वाला था।

"यह सत्र गहन विचारोत्तेजक था और हमारे छात्रों को जबरन अंग निकालने से जुड़े गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों के प्रति संवेदनशील बनाने में सफल रहा। इस वृत्तचित्र ने न केवल इस वैश्विक मुद्दे के नैतिक, नीतिपरक और कानूनी पहलुओं पर प्रकाश डाला, बल्कि छात्रों को हमारी जवाबदेही, न्याय और अंतर्राष्ट्रीय कानून की भूमिका पर गंभीरता से विचार करने और [ध्यान देने] के लिए भी प्रोत्साहित किया," शारू ने कहा।

उन्होंने संभावित समाधानों पर चर्चा को विशेष रूप से मूल्यवान पाया, क्योंकि इसने छात्रों को "जागरूकता से आगे सोचने और कानूनी और नीतिगत ढांचे के भीतर निवारक और सुधारात्मक उपायों पर विचार करने" के लिए निर्देशित किया।

अन्ना जॉन ने कहा, "इस अनुभव ने उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाया है कि किस प्रकार कानून और वकालत मिलकर मानव गरिमा की रक्षा कर सकते हैं।"

एक अन्य सहायक प्रोफेसर, पूजा ओगले ने भी इस सत्र को रोचक और ज्ञानवर्धक पाया। उन्होंने कहा कि इस सत्र ने उपस्थित सभी लोगों को, "इस जघन्य कृत्य के नैतिक, कानूनी और मानवाधिकार पहलुओं पर गहराई से विचार करने में मदद की।"

ओगले ने कहा, “इस सत्र ने जानकारीपूर्ण और विचारोत्तेजक होने के बीच संतुलन बनाए रखा, जिससे सभी में जागरूकता और ज़िम्मेदारी की गहरी भावना पैदा हुई।” उन्होंने आगे कहा कि यह कार्यक्रम “छात्रों और शिक्षकों के बीच उत्पन्न हुई रुचि के स्तर” के कारण और भी सार्थक हो गया, और कई लोगों ने आगे भी इसमें शामिल होने और ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने वाली पहलों में डीएएफओएच के साथ मिलकर काम करने की सच्ची इच्छा व्यक्त की।

उन्होंने कहा, "हम इस प्रयास की बहुत सराहना करते हैं और भविष्य में फिर से सहयोग करने में प्रसन्न होंगे, क्योंकि ऐसे कार्यक्रम सहानुभूतिपूर्ण, सामाजिक रूप से जिम्मेदार और वैश्विक रूप से जागरूक व्यक्तियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।"

कानून के छात्र: अत्याचारों के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई

स्क्रीनिंग में शामिल हुए कानून के छात्रों को यह फिल्म ज्ञानवर्धक लगी और वे सीसीपी द्वारा अपने ही नागरिकों के विरुद्ध किए गए जबरन अंग-हरण के क्रूर अपराध को देखकर स्तब्ध रह गए।

चौथे वर्ष की छात्रा मृणालिनी, जो मानवीय कानून में रुचि रखती हैं, ने कहा कि सत्र ने, "चीन में अंग निकालने के चलन की गंभीर वास्तविकता और वैश्विक स्तर पर उन्हें कैसे अंजाम दिया जाता है, इस पर प्रकाश डाला।"

मृणालिनी और उनके दोस्तों ने फालुन दाफा के उत्पीड़न और जबरन अंग निकालने के बारे में रिपोर्ट और किताबें पढ़ीं।

डॉक्यूमेंट्री देखने के बाद उन्होंने कहा कि इसमें बताया गया है कि, "चीन द्वारा ये अमानवीय गतिविधियाँ इतनी धूर्तता से कैसे की जा रही हैं कि दुनिया भर के ज़्यादातर लोगों को इनके प्रभाव और सीमा का अंदाज़ा तक नहीं है।" उन्होंने पाया कि ये चर्चाएँ प्रभावशाली और गहन शोध पर आधारित थीं, जिससे उनमें जागरूकता फैलाने और ऐसे चलन के ख़िलाफ़ कड़े अंतरराष्ट्रीय उपायों की वकालत करने की ज़िम्मेदारी का गहरा एहसास हुआ।

मृणालिनी ने कहा, "मैं इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए डीएएफओएच की तहे दिल से सराहना करती हूँ, जो मुख्यधारा की कहानियों से अक्सर छिपी कठोर सच्चाइयों को उजागर करता है। यह जानकारीपूर्ण और भावनात्मक रूप से प्रेरक दोनों था, और मेरा मानना है कि इस तरह के अत्याचारों के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई को संगठित करने में इस तरह की पहल बेहद अहम है।"

कानून की द्वितीय वर्ष की छात्रा हर्षी पटेल को जबरन अंग-हरण पर बनी यह डॉक्यूमेंट्री "बेहद प्रभावशाली" लगी। उन्होंने कहा कि उन्होंने जबरन अंग-हरण के बारे में बस यूँ ही सुना था, लेकिन कभी सही मायने में यह नहीं समझ पाईं कि यह स्थिति कितनी गंभीर है। उन्होंने कहा, "जिस तरह से इस डॉक्यूमेंट्री में वास्तविक जीवन के अनुभवों, विशेषज्ञों की अंतर्दृष्टि और आँकड़ों को शामिल किया गया है, उससे यह मुद्दा बहुत स्पष्ट और प्रभावशाली हो गया है।"

पटेल ने आगे कहा, "दिखाई गई मानवीय कहानियों ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। यह देखना परेशान करने वाला तो था, लेकिन ज़रूरी भी था कि कैसे अंग-हरण लोगों की गरिमा और अधिकारों का हनन करता है। इस डॉक्यूमेंट्री ने न सिर्फ़ मुझे जानकारी दी, बल्कि मुझे समाज, सरकारों और यहाँ तक कि व्यक्तियों की नैतिक ज़िम्मेदारियों पर भी विचार करने के लिए प्रेरित किया, जो ऐसे चलन के ख़िलाफ़ खड़े होने में उनकी नैतिक ज़िम्मेदारियाँ हैं।"

प्रथम वर्ष की छात्रा तन्वी ने कहा कि "कहानियों के भावनात्मक भार" ने उन्हें सबसे ज़्यादा प्रभावित किया, जिससे उन्हें यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि कितनी बार ऐसे मुद्दे "अपने बड़े पैमाने के बावजूद अनदेखे रह जाते हैं।" "इस वृत्तचित्र ने न केवल जागरूकता पैदा की, बल्कि हमें अंग व्यापार से जुड़े नैतिक, कानूनी और मानवीय पहलुओं पर विचार करने के लिए भी प्रोत्साहित किया। एक छात्र के रूप में, मैं इसे कानून, नैतिकता और न्याय के बारे में जो कुछ भी हम पढ़ते हैं, उससे जोड़ पाई। इसने मुझे ऐसे अपराधों से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग और कड़े कानूनी उपायों के महत्व का एहसास कराया।"

प्रथम वर्ष के छात्र समीर नदाफ ने कहा कि यह एक ज्ञानवर्धक अनुभव था, तथा डीएएफओएच सदस्यों के साथ बातचीत से उन्हें यह समझने में मदद मिली कि इतने बड़े पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन का वैश्विक स्तर पर क्या प्रभाव हो सकता है।

कानून के छात्रों ने DAFOH को जोड़ने और कार्यक्रम आयोजित करने में मदद की

यह आयोजन आईएफआईएम लॉ कॉलेज के छात्रों द्वारा संभव बनाया गया था। द्वितीय वर्ष की लॉ छात्रा तारुशी गुप्ता और उनके दोस्तों ने बेंगलुरु के लाल बाग में आयोजित 2025 पुष्प प्रदर्शनी में जबरन अंग-हरण के बारे में जाना। छात्रों ने फालुन दाफा अभ्यासियों से बात की जो चीन में जारी उत्पीड़न के बारे में जागरूकता फैला रहे थे। उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि दो दशकों से इतना गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन हो रहा है।

कानून के छात्रों ने जी 7+7 जबरन अंग-हरण याचिका पर हस्ताक्षर किये।

गुप्ता ने अभ्यासियों से कहा कि वह अपने परिसर में एक कार्यक्रम आयोजित करना चाहती हैं ताकि लोगों को इस उत्पीड़न के बारे में बताया जा सके। उन्होंने डीएएफओएच इंडिया टीम, फालुन दाफा अभ्यासियों और सहायक प्रोफेसर शारू को जोड़ा और स्क्रीनिंग की योजना बनाई गई।

गुप्ता ने अवैद्य तरीके से जबरन अंग निकालने के मुद्दे पर वृत्तचित्र दिखाने और किताबें साझा करने के लिए डीएएफओएच का हार्दिक आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह सत्र ज्ञानवर्धक था और इससे उन्हें जबरन अंग-निकालने की गंभीरता और वैश्विक जागरूकता के महत्व को समझने में मदद मिली।