(Minghui.org) कुछ लोग "चीन" को "चीनी कम्युनिस्ट पार्टी" (सीसीपी) समझने में भ्रमित हो जाते हैं, लेकिन ये दोनों अलग-अलग शब्द हैं। उदाहरण के लिए, सीसीपी एक राजनीतिक दल है, जबकि चीन अक्सर कुछ खास जातीय समूहों के लोगों से जुड़ा होता है जिनकी सांस्कृतिक जड़ें गहरी होती हैं। मैं कुछ अतिरिक्त अंतरों की ओर ध्यान दिलाना चाहूँगा।
इतिहास और विचारधारा
इतिहास के दृष्टिकोण से, चीन की सभ्यता 5,000 साल पुरानी है, जो कई राजवंशों तक फैली हुई है और जिसमें विविध संस्कृतियाँ और परंपराएँ शामिल हैं। दूसरी ओर, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1921 में हुई थी और उसने 1949 में चीन की सत्ता संभाली थी। इसलिए चीन में चीनी संस्कृति, भाषाएँ और वैचारिक मूल्य (जैसे कन्फ्यूशीयसवाद और ताओवाद) चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से बहुत पहले से मौजूद थे।
सीसीपी की विचारधारा जर्मनी के मार्क्सवाद और सोवियत संघ के लेनिनवाद से प्रेरित थी। हिंसा पर आधारित यह नास्तिकता मूलतः चीन की शांतिपूर्ण आध्यात्मिक प्रणालियों, जिनमें कन्फ्यूशीयसवाद, बौद्ध धर्म और ताओवाद शामिल थे, के विपरीत थी। यही कारण है कि सीसीपी ने पारंपरिक मूल्यों को खत्म करने के लिए कई राजनीतिक अभियान चलाए, जिनमें 1950 के दशक में दक्षिणपंथ-विरोधी अभियान से लेकर सांस्कृतिक क्रांति (1966-1976) और अन्य शामिल हैं।
एक राजनीतिक इकाई बनाम एक राष्ट्र
एक राजनीतिक दल के रूप में, सीसीपी की अपनी विचारधारा और लक्ष्य हैं। इसके विपरीत, चीन 56 जातीय समूहों वाला एक राष्ट्र है, जिसकी जनसंख्या एक अरब से ज़्यादा है और जिसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत व्यापक है।
इसलिए, सीसीपी चीन का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती, क्योंकि उसने इतिहास में केवल एक संक्षिप्त अवधि के लिए ही चीन पर शासन किया है। इस दौरान भी, पार्टी का मिशन चीनी जनता की समझ को प्रतिबिंबित नहीं करता।
सत्तारूढ़ दल बनाम आम नागरिक
महामारी के दौरान चीन में जनसंख्या में गिरावट से पहले, देश में 1.4 अरब लोग थे, जिनमें 9.6 करोड़ सीसीपी सदस्य शामिल थे। इसका मतलब है कि 7% से भी कम चीनी नागरिक सीसीपी के सदस्य थे, और शेष, 93% से ज़्यादा, सामान्य नागरिक थे, जिनकी सामाजिक स्थितियाँ, जीवनशैली और गतिविधियाँ सीसीपी से अलग थीं।
सीसीपी की नीतियाँ जनता की ओर से जारी भी नहीं की जातीं। ये निर्णय वरिष्ठ सीसीपी अधिकारियों द्वारा लिए जाते हैं, आम नागरिकों की इसमें कोई भागीदारी नहीं होती। ज़मीन ज़ब्त करना, घरेलू पंजीकरण प्रणाली, इंटरनेट सेंसरशिप और धार्मिक नियंत्रण जैसी कई नीतियाँ अक्सर जनता में असंतोष पैदा करती हैं, जिससे पता चलता है कि सीसीपी अपनी राय लोगों पर थोपती है।
सांस्कृतिक और वैचारिक टकराव
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पारंपरिक मूल्यों को बर्दाश्त नहीं करती और कन्फ्यूशीयसवाद, बौद्ध धर्म और ताओवाद जैसी आध्यात्मिक प्रणालियों को साम्यवाद में बदलने की कोशिश कर रही है। सांस्कृतिक क्रांति के दौरान, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने प्राचीन इमारतों, पुस्तकों और धार्मिक स्थलों सहित अनगिनत ऐतिहासिक कलाकृतियों को नष्ट कर दिया। यह इस बात की पुष्टि करता है कि मार्क्सवाद और लेनिनवाद पर आधारित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सिद्धांत चीनी सभ्यता के साथ असंगत हैं।
हालाँकि, चीन के बाहर पारंपरिक मूल्य अभी भी कायम हैं। भाषाओं के साथ-साथ चीनी परंपराओं और त्योहारों के माध्यम से, प्रवासी चीनी लोग अपनी विरासत को बचाए रखने में सक्षम हैं। ताइवान में, पारंपरिक चीनी अक्षर प्राथमिक लिखित भाषा हैं, और पारंपरिक त्योहार मनाए जाते हैं। न्यूयॉर्क स्थित एक प्रदर्शन कला समूह, शेन युन, पिछले लगभग 20 वर्षों से पारंपरिक चीनी संस्कृति को सफलतापूर्वक पुनर्जीवित कर रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य और वास्तविकता
उपरोक्त कारण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सीसीपी और चीन के बीच अंतर करने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, जब कुछ पश्चिमी सरकारें चीन में मानवाधिकारों के हनन की आलोचना करती हैं, तो वे सीसीपी को निशाना बना रही होती हैं, न कि चीनी लोगों या चीनी संस्कृति को।
लेकिन सीसीपी अपने प्रचार में जानबूझकर दोनों को मिला देती है, जैसे किसी भी आलोचना को "चीन-विरोधी" बताकर। दरअसल, सीसीपी की नीतियों (जैसे, धार्मिक उत्पीड़न, मानवाधिकार हनन, सेंसरशिप और विदेश नीति) पर सवाल उठाना, चीनी इतिहास, संस्कृति या उसके लोगों की आलोचना करने से अलग है। जब प्रवासी चीनी सीसीपी की निंदा करते हैं, तब भी वे चीन की विरासत को स्वीकार करते हैं और उसकी प्रशंसा करते हैं।
सामाजिक प्रभाव
2004 में कम्युनिस्ट पार्टी पर नौ टिप्पणियाँ प्रकाशित होने के बाद कई लोगों को पिछले कई दशकों में सीसीपी द्वारा किए गए कुकृत्यों के बारे में पता चला। 45 करोड़ से ज़्यादा चीनी लोगों ने सीसीपी और उससे जुड़े संगठनों की सदस्यता त्याग दी है, जिनमें से एक बड़ी संख्या ने संकेत दिया है कि वे अब भी चीन को बहुत पसंद करते हैं, लेकिन सीसीपी को नहीं।
2019 और 2020 के बीच कई हांगकांगवासी हांगकांग प्रत्यर्पण विरोधी आंदोलन में शामिल हुए। ताइवान के निवासियों की तरह, उन्होंने चीनी संस्कृति को संजोया लेकिन सीसीपी की विचारधारा और सर्वसत्तात्मक शासन का विरोध किया।
इन कारणों को देखते हुए, चीन के बाहर वेबसाइटों या सोशल मीडिया पर कई ऑनलाइन पोस्ट स्पष्ट रूप से घोषणा करते हैं कि "चीन से प्रेम करना सीसीपी से प्रेम करने के बराबर नहीं है।" वास्तव में, इंटरनेट नाकाबंदी, आर्थिक नियंत्रण और धार्मिक उत्पीड़न जैसी सीसीपी की नीतियों ने चीनी लोगों को उनकी स्वतंत्रता से वंचित किया है और चीन को नुकसान पहुँचाया है।
कानूनी और शासन ढांचा
चीनी संविधान कहता है कि राष्ट्र जनता का है। लेकिन वास्तव में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी पोलित ब्यूरो जैसी एजेंसियों के माध्यम से सत्ता संभालती है। फिर भी, यह एकमात्र विकल्प नहीं है। चीनी इतिहास में और अधिकांश अन्य देशों में, राष्ट्रों पर कई दलों या अन्य स्वरूपों द्वारा शासन किया जाता रहा है।
सीसीपी अक्सर अपनी अग्रणी भूमिका पर ज़ोर देती है। पार्टी का चार्टर और नीतियाँ पार्टी सदस्यों को विशेषाधिकार प्रदान करती हैं। यह स्पष्ट है कि सीसीपी जैसा सर्वसत्तात्मक शासन चीनी जनता और उनके हितों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।
सारांश
इन बिंदुओं के आधार पर, यह स्पष्ट है कि सीसीपी एक राजनीतिक दल है जो चीन और उसकी प्राचीन सभ्यताओं के समकक्ष नहीं है। और अधिक स्पष्ट रूप से, सीसीपी की विचारधारा और नीतियाँ चीनी जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। अंतर्राष्ट्रीय समाज और प्रवासी चीनी अक्सर इन दोनों शब्दों को अलग-अलग नज़रिए से देखते हैं। इतिहास के दृष्टिकोण से, सीसीपी चीन के इतिहास का एक छोटा सा क्षण मात्र है। इसके विपरीत, चीन राष्ट्र सीसीपी से बहुत पहले से अस्तित्व में था और सीसीपी के बाद भी बना रहेगा।
इन सब बातों से यह स्पष्ट होता है कि “चीन” शब्द इतिहास, संस्कृति और चीनी लोगों से जुड़ा है, जबकि “सीसीपी” केवल मार्क्सवाद पर आधारित एक राजनीतिक पार्टी है, जो हिंसा और आतंक का सहारा लेती है।
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