(लुनयु)
दाफा सृजनकर्ता की प्रज्ञता है। यह उस रचना का आधार है जिस पर स्वर्ग, पृथ्वी एवं ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है। इसमें सभी कुछ समाहित है, अत्यंत सूक्ष्म से लेकर वृहत से वृहत्तम तक, यह ब्रह्माण्ड के प्रत्येक स्तरों पर भिन्न रूप से अभिव्यक्त होता है। सूक्ष्मजगत की गहराईयों से जहाँ सूक्ष्मतम कण सर्वप्रथम प्रकट होते हैं, इसमें परत दर परत असंख्य कण हैं, जो आकार में सूक्ष्म से विशाल तक होते हुए, उन बाह्य आयामों तक पहुँचते हैं जिनका मानवजाति को ज्ञान है परमाणुओं, अणुओं, ग्रहों एवं आकाशगंगाओं तक और उससे आगे, जो और भी विशाल है, जहाँ विभिन्न आकार के कण विभिन्न आकार के जीवनों तथा विभिन्न आकार के विश्वों का निर्माण करते हैं जो ब्रह्माण्ड में सर्वत्र व्यापक हैं। कणों के विभिन्न स्तरों में से किसी में भी जीवों को अगले बड़े स्तर के कण उनके आकाशों में ग्रहों के रूप में प्रतीत होते हैं, एवं यह समस्त स्तरों में सत्य है। ब्रह्माण्ड के हर स्तर के जीवों को यह अनंत तक जाता प्रतीत होता है। यह दाफा था जिसने काल एवं अवकाश, अनेकों जीवों व प्रजातियों, तथा सम्पूर्ण सृजन का निर्माण किया; सब जो अस्तित्व में है इसी से है, और कुछ भी इससे बाहर नहीं है। ये सभी, दाफा के गुणों सत्य, करुणा और सहनशीलता की, विभिन्न स्तरों पर स्पर्श अभिव्यक्तियाँ हैं।
मनुष्यों के अंतरिक्ष की खोज एवं जीवन के अनुसंधान के तरीके कितने भी उन्नत क्यों न हों, प्राप्त जानकारी ब्रह्माण्ड के एक निचले स्तर पर इस एक आयाम के कुछ हिस्सों तक सीमित है, जहाँ मनुष्यों का वास है। पूर्व ऐतिहासिक काल की सभ्यताओं के दौरान भी मनुष्यों ने दूसरे ग्रहों की खोज की थी। किन्तु सभी ऊंचाइयां एवं दूरियां हासिल करने पर भी, मानवजाति कभी इस आयाम से बाहर नहीं निकल पाई जहाँ इसका अस्तित्व है, तथा ब्रह्माण्ड की सही तस्वीर इसे कभी समझ नही आएगी। यदि मनुष्य को ब्रह्माण्ड, काल-अवकाश, एवं मानव शरीर के रहस्यों को समझना है, उसे एक सच्चे पथ की साधना करनी चाहिए और अपने स्तर में सुधार करते हुए सच्ची ज्ञानप्राप्ति करनी चाहिए। साधना से उसका नैतिक चरित्र उन्नत होगा, एवं एक बार वह अच्छाई से बुराई, और सद्गुण से दुर्गुण में वास्तव में अंतर करना सीख जाता है, तथा वह मानव स्तर से आगे चला जाता है, वह ब्रह्माण्ड की वास्तविकताओं तथा दूसरे आयामों व स्तरों के जीवन को देख और संपर्क कर पायेगा।
जबकि लोग अक्सर दावा करते हैं कि उनके वैज्ञानिक लक्ष्य 'जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए हैं, यह तकनीकी प्रतिस्पर्धा है जो उनसे यह करवाती है। और ज्यादातर मामलों में वे तभी फलित हुए जब लोगों ने दिव्यता को हटा दिया और नैतिक संहिता का परित्याग कर दिया जो आत्म-नियंत्रण के लिए आवश्यक हैं। इन कारणों से अतीत की सभ्यताओं का कई बार विनाश हुआ। हालांकि, लोगों की खोजें अवश्य ही इस भौतिक जगत तक सीमित रहती हैं, तथा विधियां ऐसी हैं कि केवल उसी का अध्ययन किया जाता है जिसे मान्यता प्राप्त है। इस बीच, वस्तुएं जो मानव आयाम में अस्पर्श और अदृश्य हैं, किन्तु जो निष्पक्ष रूप से विद्यमान हैं और सही मायनों में खुद को इस वर्तमान जगत में प्रत्यक्ष करती हैं - जैसे कि अध्यात्म, श्रद्धा, दिव्य वचन, एवं चमत्कार- इनको निषेध माना जाता है, क्योंकि लोगों ने दिव्यता को बहिष्कृत कर दिया है।
यदि मानव जाति अपने चरित्र, आचरण, एवं सोच को नैतिक मूल्यों पर आधारित करके सुधारने में सक्षम होती है, तो सभ्यता का स्थायित्व, और यहाँ तक कि मानव जगत में फिर से चमत्कारों का होना संभव होगा। अतीत में अनेक बार, इस संसार में ऐसी संस्कृतियाँ प्रकट हुई जो उतनी दैवीय थी जितनी मानवीय और लोगों को जीवन व ब्रह्माण्ड की सच्ची समझ पर पहुँचने में मदद की। जब लोग दाफा को इस संसार में अभिव्यक्त होने पर उचित सम्मान व श्रद्धा प्रदान करेंगे, तो वे, उनका वर्ग, या उनका राष्ट्र आशीर्वाद, सम्मान एवं यश प्राप्त करेंगे। तथापि, कोई जीवन जो दाफा से दूर जाता है, वास्तव में भ्रष्ट है, क्योंकि यह दाफा था ब्रह्माण्ड का महान पथ जिसने ब्रह्माण्ड, विश्व, जीवन तथा सारे सृजन का निर्माण किया। कोई भी व्यक्ति जो दाफा के साथ समन्वय में हो सकता है सच में एक अच्छा व्यक्ति है, और स्वास्थय एवं सुख से पुरस्कृत व धन्य होगा। और कोई साधक जो दाफा के साथ एक हो जाता है वह एक ज्ञानप्राप्त व्यक्ति है दिव्य।
ली होंगजी
मई 24, 2015